Raffia Rabbi   (Raffia Rabbi)
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Joined 19 January 2018


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Joined 19 January 2018
2 MAR 2022 AT 20:36


हक़ तल्फी करने वाले
अब हक़ की बाते करते हैं
कमज़ोरों पर जुल्म ढाकर
इक़्तिदार  की बातें करते हैं— % &

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2 MAR 2022 AT 20:06

पिछड़े हैं वो लोग
जो यलगार की बातें करते हैं
कलम से जहां फतह मिलेगी
तलवार की बातें करते हैं— % &

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10 JAN 2022 AT 23:56

फासले से हैं कुछ
कुछ नजदीकियां भी हैं
वक्त भी बंट गये सारे
जो कभी दरमियां थे हमारे
कुछ मश्रुफियतें भी,
जिम्मेदारियों के
फिर भी आदत हैं हम
एक दूसरे के...— % &

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13 JUL 2021 AT 10:04

कलाकारों का सरदार, ऐसा फनकार था वो ।
नाम -ए- युसुफ, पहचान -ए -दिलिप कुमार था वो ।

बाग़ी सलीम तो कभी दीवाना देवदास,
छाप अपनी छोड़ जानेवाला ऐसा क़िरदार था वो।

संजीदा लहज़े में भी,दिलकश मुस्कान में भी
हर दिल अज़ीज़ ,ऐसा अदाकार था वो ।

अदाकारी में जादूगरी नयादौर लानेवाला
अभिनेताओं का आदर्श,बॉलिवुड का सुपरस्टार था वो ।

देश प्रेम का असल दर्श सिखलाने वाला,
दो मुल्कों के दरमियान एक रवादार था वो ।

आज हर शय को छोड़ गया पीछे,
खवातीनो के दिल का राजकुमार,
दिलिप कुमार था वो ।

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11 JUL 2021 AT 21:26

(३) हलाकत की हकीकत से हुए रू -ब -रू
किस्से कहानी में अबतक जो सुन रहे थे।

गर कोई कर रहे थे खयानत बड़ी
फिर भी कुछ लोग नेकियों में बढ़ रहे थे।

तेरे रहमत के आज तलबगार हैं
कलतक जो तुझ को भुला बैठे थे ।

🤲🤲🤲🤲

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24 JUN 2021 AT 18:50


(२) शिर्क ओ नफ़रत में इस क़दर मुब्तिला थे
हमसाये - बेरादर से लड़ रहे थे ।

पैमाना है लबरेज जुल्म ओ सितम का
भड़का है तभी गज़ब खालिक का ।

माफ़ करदे खुदारा खताएं हमारी
दुनियादारी में दिल लगा बैठे थे।

कफस बन जाएंगे अपने महल
चार दिवारी के अंदर भी डर रहे थे।

किसी को सजा तो इब्रत किसी को
कन्धों के बिना जनाजे उठ रहे थ ।

जान के लाले तो कभी खाने के
ये कैसी मकां पर आ बैठे थे ।
to be continued....


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24 JUN 2021 AT 6:55

(१)अब तलक गफलतों में जिए जा रहे थे
खता कर रहे थे, दगा दे रहे थे ।

रहम पर रहम वो किए जा रहा था
मौकों पर मौके दिए जा रहा था ।

भूल बैठे थे उसके फज्ल ओ करम को
नाशुक्र ए इलाही हम बन बैठे थे ।

अपने ही नफ्श पर जुल्म हमने किया
तकब्बुर किया, ता'स्सुब से भरे थे ।

अब जो टूटी कयामत है सर पे हमारे
खौफ आया तेरा लोग जब मर रहे थे ।

हर दूसरा घर है वीराना
लोग अपनो को जो खो बैठे थे ।

........ to be continued

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30 JAN 2021 AT 23:38

मुहब्बत हरदम जवां है हमारी
चाहे हो जवानी
या आए हमको पीरी

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26 JAN 2021 AT 0:21

A freedom can never be completed without any
boundaries(of law,,of decipline,,of love,,of tolerance...)

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25 JAN 2021 AT 23:54

जज़बा - ए - आज़ादी अब भी जब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू - ए - क़ातिल में है

शंग से पुर हों दस्त भले गैरों के तुम ए जान लो
जिश्म पानी है मेरा ना उनके गुमान - ए - बातिल में है

कितना भी हाथ पैर मार ले सरहद पे ऐ दुश्मन की कौम
अपनी आज़ादी तो अब अनकरीब साहिल में है

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