दिल पर मंजीरे की झंकार
तभी सुनाई देती है जब होता है प्यार
-
सुकून की फनगुनियाँ जब हृदय में खिलती है
पोटली मुस्कान की खुद बा खुद भरती है
जब मिलता है कोई हृदय के बगीचे में
तो हरापन छा जाता है समूचे में
अपनों का साथ मानो धूप में बरसात
स्मृतियों की छाया जब मडराती हैं
हृदय में मोतियों की माला सी गुथ जाती है
-
बेबसी की चौखट पर बिखरा मेरे मनोबल का बूटा
हर बूटे पर कसीदे से कढ़ा है मेरी आजमाइश का खूटा
अंधेरे की साए में दिखती बलखाती नागिन सा नमूना
जो अभी डस लेगी मेरा वजूद समूचा
हर उगते सूरज के साथ रंगहीन दीवारों पर
उम्मीदों का मुख लिप पुत जाता है
सांझ ढलते ढलते वह स्वयं ही विलुप्त हो जाता है
अंगड़ाईयों की भीगी-भीगी सहानुभूतियों का कोई कहांँ मोहताज है
चांँद की सादगी देखिए वह तो बेपरवाहों का सरताज है
-
मेरे भी हाथों बेबसी की पतवार थमी है
विचारों के मस्तिष्क में खूब उथल-पुथल मची है
माना विरुद्ध बहती है धार
पर बहने ना दूंँगी अपना संसार
करघा के तंतुओं पे धागा लपेट रही हूँ
मुट्ठी में तनी हुई वल्गाओ में अपना वर्चस्व ढ़ूढ़ँ रही हूंँ
संकल्प लिया है व्यर्थ नहीं होगा जद्दोजहद झेलना
अब मुझे आता है लहरों से खेलना-
अभिव्यक्तियों का सूरज भला कब ढलता है
वह तो हर आशाओं पर और निखरता है
मेड़ की लकीर पर खड़ी आंँखें ढूंँढ़तीं अपना ठिकाना
क्षिति रेखा खोजती जहांँ ठहरे अपना आशियाना
सूनी आँखें तकती है साथ तुम्हारा
जाने कब आएगा वो ज़माना
लोग कहते हैं अत्यधिक भावुकता से बचों
पर अपने दिल का हाल किससे कहो
किसी की संवेदनाओं का गागर कोई तोड़ देता है
जाने कैसा मधुकोष है स्वयं को निचोड़ देता है
-
कांटे की कीटिर हटाने में कुछ तो चुभता है
घर बनाने में प्रेम से अधिक समर्पण लगता है
खर्च हो जाती है जिंदगी रिश्तों को जोड़ने में
पल ना लगता लोग कह देते हैं
यह तो फर्ज होता है अपनों का
उन्हें क्या पता ना जाने
कितना त्याग छुपा होता है इसमें सपनों का
देवदूत नहीं आते रिश्ते बचाने
तुम्हें खुद खेनी पड़ती है नाव उन्हें करीब लाने
-
सूरज ने भी खोला अपना राज़
आज वह कुछ ज्यादा है खास
दांपत्य जीवन देख आपका
मौसम में भी गरमाइश आ गई
कुंवारों ने पता मांँगा किसने आपकी जोड़ी है बनाई
इस रिश्ते में केवल मिठास की अभिलाषा व्यर्थ है
कुछ इमली का स्वाद चखना भी इसमें सार्थक है
संग मिल जब जिंदगी का स्वाद चखते हैं
तब ये रिश्ते और भी निखरते हैं
पत्तों की हरियाली फूलों की लाली
सदा महकती रहे आपके जीवन की डाली
शरद चांँदनी से भरी रहे अजुंरी तेरी
विवाह की वर्षगांठ की बहुत बधाई मेरी प्रिय सहेली
-
गुलाब ने कभी खुशबू देने से इंकार ना किया
वह जन्मदिन पर भी महका चाहे मैयत पर चढ़ा दिया-
अंधेरे की छाती पे ढ़ूढ़ती जिंदगी की रोशनी
बड़ी कठिन है संसार से दिल्लगी
कापते हाथों से दुआ में उठते हाथ
भरोसा था दुआ पर फिर भी छूट जाता है साथ
जरूरतों की ताबीर में ख्वाहिशें करते दफन
एक पल ना लगता और इंसान पर लिपट जाता है कफ़न
-