Radhika Verma   (radha_verma)
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Joined 10 March 2019


Joined 10 March 2019
4 OCT AT 14:31

यथार्थ के समंदर में 
भला कूंची से रंग कहांँ भर पाए 
पत्थर सी खड़ी शिला 
भला तुम्हारा प्रतिबिंब कहांँ गढ़ पाए 
तुम्हारी याद में वेग सा मन उफनता है बहुत 
खोजती आंँखों की पुतलियांँ तुम्हें 
देखने को दिल भटकता है बहुत

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4 OCT AT 12:44

तेरे आंँगन से बहती बहार
मेरी  आत्मा तृप्त कर जाती है
सुना है वहांँ अब जूही की फुलवारी नहीं 
फिर भी न जाने क्यों 
उसकी सुगंध मुझ तक पहुंँच जाती है
 प्रतीक्षा की गठरी मेरे मुहाने बंधती रही 
तुम उसे खोलने ना आए 
अनकही सिसकियांँ मेरे अंदर घुटती रही
सुखद अहसास देता है भोर का उजाला 
शायद तुम्हें दिख जाए 
पर मेरे हिस्से तो मटमैली धूप का दामन ही आए 
अधूरी है अनुभूति हृदय तुम्हें बता पाये ना
अंधकार के सागर में गोता लगा रहीं
देखना मन हारे ना


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3 OCT AT 21:28

                         सत्य 
                       कदाचित छोटा
                      एंव ओछा नहीं 
                  उसे खोजना आवश्यक कहांँ
                  सत्य स्वतः ही उजागर होता
                  यह वह बीज है जिसका वृक्ष 
             झूठे पर्वत को भी बौना साबित करता

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23 SEP AT 21:31

खुद को खोजने जब निकली
दिल के हर कोने में तुझे पाया 
फिर समझ आया तेरे साथ के बिन 
 मेरा वजूद मुकम्मल कहाँ  हो पाया

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20 SEP AT 8:25

सृजनात्मक केवल बाहरी नहीं 
वरन अंतर्मन का सृजन भी आवश्यक है 
सोचो स्वयं की दृष्टि को चकमा दे 
क्या तुम अपनी सार्थकता पा पाओगे 
आत्म चिंतन की दृष्टि से अलंकृत हो 
क्या लज्जा की सीमा को मर्यादित कर पाओगे 
यदि हांँ तो अवश्य पाओगे 
अपना निर्धारित लक्ष्य 
सृजन का रास्ता थामो 
और निकल पड़ो अपने पथ पर

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29 AUG AT 22:27

यह कैसा रास्ता है यह कैसा सफर है 
मंजिल की चाह लिए बढ़ता हर सख्श है
फिर भी संपूर्णता के सरोवर में नहीं नहाता जीवन
मधुमक्खी के छत्ते सा बुनता मन
सब कुछ पाने की चाह में कुछ छूट ही जाता है
बिना कमी के भला जीवन पूर्ण कहांँ कहलाता है

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26 AUG AT 18:56

आरज़ू इतनी सी है, 
मेरी ख़ामोशी में भी शोर तुम्हारा रहे ।
भले गुमनाम रहे जिंदगी,
पर जिंदगी भर साथ तुम्हारा रहे।।

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23 AUG AT 23:49

सोचती हूंँ उसे चाहतों की जंजीर से बाँध लूँ
चलो आज थोड़ी दहलीज लांघ लूँ 
कुछ ख्वाहिशों की हवा बह रही है 
जाने कोई कहानी या किस्सा कह रही है
महक उसकी भर ली है आंँखों में हमने
जाने सच है या मैं  देख रही हूंँ बस उसके सपने

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23 AUG AT 9:02

सुदूर में उठती  अभिलाषयें
खंजरों से चुभती अपेक्षाएं
क्यों दफन नहीं हो पाती सारी चिंताएं 
नहीं आती ऐसी कोई छतरी 
जिसके अंदर आते ही ढ़क जाए सारी विपत्ति 
जीवन एक त्यौहार है खुलकर जियो 
चलो जीवन से जुगलबंदी करो 
जीवन एक पर रंग हजार है 
ना सोचो खुशियाँ क्षणिक है 
छोटी-छोटी खुशियांँ भी भर देती हैं जीवन में उजाला 
कभी-कभी उड़ते जुगनू भी दे जाते हैं जीने का सहारा

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19 AUG AT 10:39

माँ
मांँ के जाने के बाद 
बस स्मृतियों के बादल रह गए साथ 
उनकी याद मानो शांत झील में फेका ढेला
इंद्रधनुष सा रंगीन हो जाता है 
हृदय में उनकी यादों का मेला
 उनकी याद की लौ स्वत: प्रज्वलित हो उठती है 
जब कभी मोबाइल की घंटी बजती है 
फोन लगा नहीं पाती थीं पर उठाना सीख लिया था 
उन्होंने  खुद को समेत रिश्ता निभाना सीख लिया था
ऐसा निस्वार्थ प्रेम भला एक मांँ के सिवा कौन कर पायेगा 
उनकी जगह जीवन में कोई नहीं भर पायेगा 
हरसिंगार सा झरता उनका प्यार 
अब किसी को नहीं रहता मेरे फोन का इतना इंतजार,,,,,,,,,

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