Radhika Verma   (radha_verma)
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Joined 10 March 2019


Joined 10 March 2019
59 MINUTES AGO

लिखा कलम से एक ख़त इश्क़ के नाम जरूर था
पर स्याही उसमें रूह से भरी थी
इस बात इल्म भला तुम्हें कहाँ था
तुम बस शब्द पढ़ पाए
जज्बात कहांँ समझ पाए
काश समझ पाते रूह की रूहानी
तो आज अपनी भी होती एक कहानी

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15 HOURS AGO

इच्छाओं के घोड़े दौड़ाना भी एक रवानी है
हर सुबह की अपनी कहानी है
सूर्य का प्रकाश जब बढ़ता है
रात की स्थिरता छोड़ शरीर काम पर लगता है
चमचमाती मिनारो की ऊंचाइयों को छू पाओगे
स्वयं पर विश्वास रखो
तुम अपना आकाश बना पाओगे
अभिलाषाओं की कठपुतलियां चलने दो
अंतर्मन में ताने-बाने बुनने दो
मृदुल पवन के झोंके तुम्हारे भी हिस्से आएंगे
ज्योति अन्तम् में जला लो 
तुम्हें पद चिन्ह स्वयं मिल जाएंगे

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3 MAY AT 22:14

इस कदर मेरी यादों में बसे हो तुम
मेरी शाम के धुंधलेपन में दोपहर का उजाला हो तुम
मेरे एकांत में तुम्हारी यादों का समंदर उछाल मारता है
तड़प इतनी गहरी है कि समंदर का कंपन भी कम लगता है
मेरे सूनेपन की गहराई कहांँ नाप पाओगे
गहरी अंध गुफाओं में समाती जा रही हूंँ
प्रकाश की लौ लिए तुम भला कब आओगे

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2 MAY AT 10:24

रात हसरत लिए स्थिरता की मिट्टी में धसी जा रही है
तुम आकर सांचे में ढाल दो वरना
हृदय में दबी मिट्टी परिवर्तित होती जा रही हैं 
आकांक्षाओं के सोत्र अब नहीं संभलते
प्याले भर जाने की हद तक है फिसलते
मेरा अस्तित्व बिन तुम्हारे निरवता का अन्वेषक होता जा रहा है
मेरे हृदय में प्रज्वलित दिया बिन तेल बुझा जा रहा है
एक वीणा हूंँ मैं सांसों की अभिलाषी
काश बांसुरी होती तो सांसे खुद पर खुद गुजर जाती

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1 MAY AT 22:17

मन की गठरी उसकी चाहत के लिए  है ठहरी
न उतार पाएगा कोई चाहे जिसकी हो ढेहरी
खुलेगी उसी के आंँगन
जिसके लिए बँधा है यह मन 
इंद्रधनुषी रंगों में सजा दीप के चौबारे
निहार रही है अंँखियाँ कब आओगे मेरे द्वारे
स्वर्णाभ किरण गायेगे मंगल
जब होगा उनसे मिलन

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30 APR AT 15:05

ब्रह्मकमल खिले चांँदनी रात में
सुगंध अंँधेरे महकने लगे
मन पर घिरे कुहासे सन्नाटे को चीर खुद छटने लगे
सिरहन के रोमकूप खुलने लगे
फिसलन भरे रास्ते काट आयी
उदासियों के गन्ध पत्र स्वयं बाँट आयी
शून्य सा प्राण अब नहीं फड़फड़ाता है
तुम्हारे सानिध्य का जो संग साया है
संपूर्ण कहांँ है दस्तखत बिन तुम्हारे
दस्तखत के नीचे की लकीर है तेरे नाम के सहारे

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28 APR AT 22:09

आंँखों ही आंँखों में अनकही बातों का संवाद निराला होता है
बिन कहे सुनने का अलग ही तराना होता है
गुजर गए जुलूस इस तरफ से पर हमें नज़र नहीं आया
तेरी आंँखों का सुरूर इस कदर है समाया
यद्यपि परिचय अधरों से दूर था
पर इसमें आंँखों का क्या कसूर था

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26 APR AT 23:02

दो पल अभिभूत रहने दो मुझे
जुबां चुप रहे नज़रों से कहने दो मुझे
तुम्हारे आने की हर पल कौतुहल मेरी आंँखों में दिखे
तेरे करीब रहने में ही मुझे सुकून मिले
स्वयं को विसर्जित कर दूँ
मेरे स्नेह का घड़ा इतना सधा है
तुम क्या जानो तुम्हारे लिए किस कदर
मेरे दिल में इश्क़ भरा है

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26 APR AT 0:12

रात बीती मगर सितारे अभी भी
तेरी यादों के साए में ऊँघ रहे हैं
द्वंद सासें इस कदर शोर मचा रही हैं
मानो‌ रेत पे तेरे निशां ढूंढ रहे हैं
हर प्रहर बीत जाता है बिन हलचल के
पर दिन का अंतिम प्रहर बहुत बवाल मचाता है
कितना भी सोचूं रहूंँ यथार्थ में
पर दिल बस तेरे ही सपने सजाता है
अब सोचती हूंँ दिल को ताला लगा दूंँगी
और चाबी तुम्हें ही थमा दूंँगी
यदि हृदय में मेरे लिए स्पंदन हो तो चले आना
हांँ चाबी तुम्हारे पास है उसे मत भूल जाना

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24 APR AT 23:30

इश्क़ छुपता नहीं किसी के छुपाने से
यह तो बिन बताए पता लग जाता है ज़माने को
कितनी भी टूटी हो सीढ़ी परवान चढ़ ही जाती है
आंँखों ही आंँखों में वह धड़कनों तक पहुंँच जाती है
अफवाह नहीं है यह सच का फलसफा है
राहों के पत्थर भी पैरों में चुभते नहीं
जब इंसान इश्क की गलियों से गुजरता है
पहाड़ी के पांँव क्या चढ़ते हैं 
ये‌ तो इरादों की चढ़ाई है
जिसने किया इश्क ये बेबसी उसी की झोली आई है

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