radhika Jha   (राधिका)
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प्रेमकाव्य 🌼🌼
Joined 23 May 2020


प्रेमकाव्य 🌼🌼
Joined 23 May 2020
11 APR AT 12:31

अगर छूट जाए पतंग की डोर तो कुछ न कहना
अगर रूठ जाऊ मैं तुमसे बिना कुछ कहे
कुछ न कहना
रोक लो अभी आखों में आसू बहुत हैं
बिखर गए एक बार तो कुछ न कहना
समझ जाओ अभी बातो को मेरी
न समझ सको बाद में तो कुछ न कहना
बड़े नाजुक है यह लम्हे
अभी संभाल लो
टूट जाए जब रिश्ते
तब कुछ न कहना
ये वक्त हैं जो बार बार आता नहीं
चला जाए जो एक बार तो
कुछ न कहना
कह लो अभी तुम्हे जितना है कहना
जब हो जाएगी देर
तब कुछ न कहना ......

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29 MAR AT 22:27

ख्वाहिशों के आसमान में
सख्ती की तपन
और मेरे प्यार का पौधा सुखा जा रहा है
विश्वास की गीली मिट्टी
पत्थर दिल सा सुखा बंजर
और आसू का खारा समंदर
ये काला मौसम
चिलचिलाती गर्मी
फटती धरती
मेरा नन्हा सा पौधा
कैसे लड़ेगा
पत्ते सुख रहे हैं
बंजर बढ़ रहा हैं
प्यार का छोटा सा पौधा
पानी को तरस रहा है

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22 NOV 2023 AT 20:56

एक श्याम का सवेरा होगा
जिस दिन तू मेरा होगा
यादें ढेर सारी होंगी
बाते कितनी हमारी होंगी
न चैटिंग होगी ,न कॉलिंग होगी
न फोटो की स्क्रोलिंग होगी
न वक्त के पांबद होंगे
मर्यादा में न बंद होंगे
कितना प्यारा एहसास होगा
जब तू मेरे पास होगा
इस सुकून की तालाश में कितने दिन गुजारे है
हर रोज़ टूट के, कितना कुछ हम हारे हैं
ये फेरे ,ये बंधन ये रिश्ते कितने सारे हैं
न तेरे , न मेरे , रिश्ते जो अब हमारे है

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28 SEP 2023 AT 13:03

पता ही नहीं चला
कब हम भीड़ से एक तरफ हो गए
एक तरफ से अकेले
कब शोर से सन्नाटा पसंद आने लगा
कब मन खुद मे सुकुन पाने लगा
प्यार की पट्टी भी आखों से उतरनी लगी
कमजोर दिल कब पत्थर का बना ,कुछ पता ही नहीं चला
इस टैरिफ के शोर से ,खुली हवाओ तक का। सफर
दोस्तों मे दिन गुजारने से ,चार दीवारों को दुनियां बनाने का सफर पता नहीं चला
पर हसी से उदासी तक का वक्त पत्थर दिल होने तक का समय पता चला
सब कुछ बदल गया , पता ही नहीं चला

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22 SEP 2023 AT 11:09

ए रात संभल ,
थोड़ा धीरे गुजर
मेरा यार हैं साथ
थोड़ा ठहर के चल
बरसों बाद मुलाकात आई है
वक्त ठहर जा चांदनी रात आई हैं
ख्वाब की हकीकत में बारात आई हैं
अभी देखा है मैंने उसे जी भर के
अभी भी जी मेरा भरा नहीं है
संभाल हैं ख़ुद को बहुत
अब लड़ खड़ाने दो
वो भी संभाले मुझे
बाहों मे उसकी गिर जानें दो
जो देखती हू आइना उसके बैगर
उस आइने में आज उसे भी निहारना हैं
आज खुद को नहीं उसके बालो को संवारना
बताना है , सुनाना हैं , समझना समझाना
दिल में भरा प्यार एक रात मे लुटाना है
सिरहाना हो उसकी बाहों का
गोद में उसके सोना है
हंसना हैं,रोना है
उस रात सिर्फ उसकी होना है
तू ही बता मैं यह सब कैसे करू
तू ठहर जा रात , न मैं तुझ से लडू
ए रात संभल ,
जरा धीरे गुजर
मेरा यार आया है
थोड़ा ठहर के चल

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20 SEP 2023 AT 16:35

हर रोज जो टूटे
तुझे वो ख़्वाब लिखना है
तूझे मंजिल
खुद को तलाश लिखना है
चेहरे पर हसी
दिल को उदास लिखना है
खुद को शब्द
तुझ को किताब लिखना है
प्यासे की प्यास
तूझे पानी ,शराब लिखना है
खुद को जिस्म
जिस्म का तूझे लिबास लिखना है
अंधेरा खुद को
अंधेरा का तुझे राज लिखना है
शोर खुद को
तूझे शांत स्वभाव लिखना है
मिलने की तड़प
तूझे हसीन मुलाकात लिखना है
खुद को दर्द
तूझे दावा ए खास लिखना है
तूझे इश्क
खुद को इश्क में बर्बाद लिखना है

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9 SEP 2023 AT 13:34

मर्दों के इस जंगल में
बहुत भेड़िए बैठे हैं
ताक लगाए हवस की
कई रिश्तों में छुप के रहते हैं
छूते हैं, टकराते हैं
गलती कह मुस्काते हैं
भेड़ बन मासूमियत से खेलते
भेड़िए बन के खाते हैं
हर वक्त घात लगाते हैं
रोज चौराहे सड़कों पर
हर चप्पे पर मिल जाते है
और हम देते हैं मौका उन को
दबते हैं ,झुक जाते है
वो चिल्लाते ते है हम सहम जाते हैं
हम डरते हैं ,वो हिम्मत अपनी बढ़ाते हैं
खुद को सीखना समझाना होगा
लड़ने के काबिल बनना होगा
वो बोले , हमे चिल्लाना होगा
हाथ बढ़ाना नही ,हाथ उठाना होगा
झुकना नहीं ,झुकाना होगा
शेरनी बन जाना होगा
बैठे हैं जो मांद में
इन्हे दबोच के खाना होगा

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8 SEP 2023 AT 20:24

एक कैद मेरी थी ज़िंदगी
तुम आसमान हो गए
मैं जिमेदारियों से बंधी
तुम आजाद जहान हो गए
कभी कभी ले लेती थी
तुम्हारी बातों की हवा
कभी मेरे गमों का तुम जाम हो गए
मेरी खुशी भी हो तुम
मेरी कमी भी हो तुम
मेरी हसी भी हो तुम
आखों की नमी भी हो तुम
तुम पल बदलती घड़ी की सुई
हम शब्दों का विराम हो गए
फिर हसी से मुस्कुराहट
मुस्कुराहट से खमोशी
ख़ामोशी से नमी
नमी से आज हम अंजान हो गए

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6 SEP 2023 AT 14:31

मुझ को बदल कर पूरी तरह
मुझ से मेरा हाल पूछता है
क्यों बदल गई इतना
मुझ से अब वो यह सवाल पूछता है

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4 SEP 2023 AT 18:08

अब मैं हस्ती नही हूं
मुस्कुराती नही हूं
कोई बुलाए भी पास
पास जाती नहीं हू
सुनती हूं सबकी
कुछ अपना सुनाती नहीं
बात करती हूं सब से
बातें बताती नहीं हूं
बचपना अपना कही अब दिखाती नहीं हू
रूठती भी नहीं किसी से
मनवाती भी नहीं हूं
जबरदस्ती हाल किसी को समझाती नहीं हू
झूम के नाच, गाती नही हूं
अब शीशे में देख खुद को ,मैं इतराती नहीं हू
सवर्ती नहीं,काजल लगाती नही हूं
खुद मे हस के बड़बड़ाती नहीं हूं
संभालती हू खुद को ,
बिखर जाती नहीं हू
पहले की तरह मैं मुस्कुराती नहीं हूं ......


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