Radhey Shyam Sharma   (R S Sharma)
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Joined 14 February 2017


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Joined 14 February 2017
26 AUG AT 0:30

आँखों में कुछ तो धुंधला हुआ है
चश्मे से नजरों का पर्दा हुआ है ।।
हम उनकी रौशनी को ढूंढते रहे चश्मे पर
वो अब भी आंखों से उनकी,लिपटा हुआ है ।।

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8 AUG AT 23:53

मैं तेरे समय में नहीं मंटों, जो बगावत लिख दूं।
चीखें सुनाई देती है आज भी, ज़ख्म वही कैसे कह दूं।।

पोशाख़ पहने हुए है सफ़ेद उसने,चेहरे वही है मंटो ।
कलम कुछ कहे कैसे ,कलम ही रोक(मीडिया)देती है।।

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28 JUL AT 1:06

मैं किसी की मुफलिसी का साया नहीं
रोते क्यों हो कि, उजाड़ा किसने है

गिड़गिड़ाते हो , चढ़ावा चढ़ाते हो
बनाया है जिसे ,तुम्हारे हाथों ने

भगवान समझते हो ,तो क्या समझते हो
भूमि गगन वायु नीर,मतलब समझते हो

कर्म फल तुम्हारे कर्मों का द्योतक है
ये रोना ये धोना पाखंड की रवायत है

करो कुछ तो जतन ,उस भगवान का जो
हरे भरे प्रकृति की बनावट की सजावट है ।।


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28 JUL AT 0:43

गुरूर क्यों ना करूं
क्या नहीं है
ये ग़म ,ये अना
ये खता ,ये जुनून
सब तो है, मेरे आशियां में ।।
तू ख़ुदा ही सही
क्या है सब
तेरे मासरे में,
तू दिखता नहीं
तू बिकता है
रहता नहीं ,अब
किसी सुदामा के
आसरे में।।

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27 JUL AT 1:32

मसौदा तैयार है जिंदगी का, कि हमें मालूम ही नहीं।
गवारा नहीं हार जाना भी मेरा,ये उसे भी मालूम नहीं।।

आओ बैठो मेरे आशियाने में,देखो क्या खेल है यहां।
वो सफेद पोशाख में अब ,भेड़िए नजर आने लगे है।।

तू कहीं होगा तो इल्तेज़ा सुन,ये रंग धुंधलाने लगे हैं।
तूने बनाया जिसे इंसान,वो जानवर अब कहलाने लगे है।।

फ़रेब गुरेज जलन और भी है,तेरे इस चमन में,क्या कहूं।
किसी आसरे के मोहताज नहीं हम,तेरे बगैर ही टकराने लगे है ।।



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25 JUL AT 2:02

एक उम्र का पड़ाव, जहां रात लंबी हो गई
उलझने सुलझेंगी कैसे,ये बात लंबी हो गई ।।

अब करेंगे जतन, कि ख्वाहिशें बढ़ने ना लगे
मुकम्मल हो जाए मंजिलें अब, के इंतेज़ार लंबी हो गई ।।

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7 JUL AT 16:09

कारवां ठहरता नहीं है,
दो पल कहीं बैठ जाने से

वो तो बेड़ियों की कसक है
जो आवाज, दे जाती है कानों में

अब चलेंगे और भी एहतियातन
देखेंगे कोई बंदिश, महदूद ना हों राहों में ।।

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9 JUN AT 22:27

मैं अपने ख़्वाबों को सुला आया हूँ
कि अभी बाक़ी है ,अपनों के गिले शिकवे।

यहाँ तमाम इम्तेहान बाक़ी है,अधूरे इल्म अब भी है
कैसे समझाएं एहतराम अपना,उनके अपने हजारों है।

सर कटा दे कैसे कोई अपना , झुक गया जो ख्वाहिशों पर
मरकर हासिल क्या ही होगा, कफ़ारा जीने में ही बयां होगा।।


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1 MAY AT 0:02

किसी और की फिक्र किसे है यहां
कोई ज़िंदा होगा अगर तो ,गौर फरमाइएगा।।

सब चूर है अपने अपने धर्म की मदमस्तियों में
इंसानियत, बची होगी कहीं,तो वज़ह फरमाइएगा ।।

यहाँ अभी ब्लॉक कर देने का सिस्टम है ,लिख रहा हूं
हम भी ब्लॉक हो गए तो, इत्तेला जरूर फरमाइएगा।।

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14 APR AT 1:38

कठोर से भी कठोर हो गई है, निजी जिंदगी सब की
उन्हें कोई किनारा नसीब होगा ,तो ही तलाशेंगे
चाहिए क्या इन्हें अभी,दौलत, शोहरत, रुतबा,माथे पर पैशानी
ये घर, घरौंदे, दोस्त ,अभी बेइमानी है, अभी रहने दो
उतरेगा ये नशा जरूर,इन्हें अभी इस जवानी के नशे में रहने दो



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