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आइए मुझसे मुहब्बत कीजिए
~राधेश्याम तिवारी
ज़हर के बाद उसने दवा भी दिया
इस तरह उसने ख़ुद को ख़ुदा कर लिया-
गैरों की बातों में आकर,उसने रिश्ता तोड़ दिया।
तस्वीरों में उसकी मैंने, कान बनाना छोड़ दिया।-
मिलने की कोशिश में तुमसे , जाने कितने दूर हुए,
पढ़कर मेरे प्रेम पत्र को, पिता तुम्हारे क्रूर हुए ।
हाथ जोड़कर मैंने देखा, देखा पैर पकड़कर भी ,
नौकरी सरकारी नहीं है, इस कारण मजबूर हुए।
सोचा है पढ़ लिख कर हम भी, अफसर वफसर बन जायें ,
पैसे के दम पर फिर हम भी, महबूबा को घर लायें ।
महबूबा तो जल्दी में थी, डोली बैठी चली गयी,
सबकी यही कहानी भैया , और भला क्या बतलायें
हमने अपने दम पर देखो, घर भी अपना बना लिया ,
बसा लिया है घर भी अपना, सपना भी साकार किया।
बात समझ में अब आयी है, प्रेम समय से बड़ा नहीं,
प्रेम मात्र एक कल्पना है, जाने वही जिसने जिया ।-
मिलने की कोशिश में तुमसे , जाने कितने दूर हुए,
पढ़कर मेरे प्रेम पत्र को, पिता तुम्हारे क्रूर हुए ।
हाथ जोड़कर मैंने देखा, देखा पैर पकड़कर भी ,
नौकरी सरकारी नहीं है, इस कारण मजबूर हुए।
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आपको मुझसे कोई ख़तरा नहीं है
क्योंकि मेरा आपसे रिश्ता नहीं है
बेवफा को आपने दिल दे दिया है
इतना अच्छा होना भी अच्छा नहीं है
वो खुदा की बात करता है अमूमन
उसने माँ को गौर से देखा नहीं है
आज भी मैं बस उसी को चाहता हूँ
एक पल उसके बिना गुज़रा नहीं है
सामने दिखना ज़रूरी है तुम्हारा
देर तक दिल में कोई रहता नहीं है
जाने क्या क्या मस'अले हैं जिंदगी में
मसला ये भी है कोई मसला नहीं है
इस कदर मैं भूल बैठा हूं खुदी को
मेरी ग़ज़लों में कोई मकता नहीं है-
"दोहा"
मैं तुम ये वो हम सभी , घूम रहे थे धाम
बाहँ पसारे थे खड़े , अपने अंदर राम
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बगैर उसके अब मैं दुखी क्यूँ नहीं
मलाल है उसे मेरी इस बात का-