भाई कहूं या पिता कहूं
सारे रिश्ते तुमने ही तो निभाया है।
जब जब मैं रूठ जाऊं तब तब तुमने मुझे मनाया है।
तुमने ही तो मेरा हाथ पकड़ मुझे चलना सिखाया है
बातें सारी जब भी पुराने दिनों की याद मुझे आती है कभी-कभी आंखों में आंसू लिए बहन तेरी सो जाती है।
हंसते-हंसाते कभी लड़ जाना कभी रूठना तो कभी मानना ।
जादू तो तुम्हें कोई आता है, क्योंकि बिन कहे भी तो चेहरे से सब समझ जाता है।
जब भी उदासी मेरे चेहरे पर छाई, बन पिता की परछाई साथ तूमने निभाया है।
भाई कहूं या पिता कहूं
सारे रिश्ते तुमने ही निभाया है।
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