वो किसी ख्याल सा था
मैं एक उलझीं हुई सपने सी थी
वो पहली बारिश सा था
मैं सावन के मौसम सी थी,
वो ठंड की धूप था
मैं गर्मी की तपन सी थी,
वो सबके लिये था,
मैं बस उसके लिये थी,
मेरे लिये वो पहले थे
उसके लिए मेरे से सब पहले थे!
मेरे लिये वो पूरी दुनिया था
उसके लिए ,दुनिया में मैं थी.
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कभी दिखे मुझे वो कहीं,
तो थोड़ा देर ठहर जाऊँगी।
एक गलती फिर ना दहराऊँगी,
अगली मरतबा मैं भूल जाऊँगी.-
सफर में फासला यूँ कट जायेगा,
मैं आँखें बंद करूंगा ,
और ये वक़्त गुजर जायेगा॥
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है दुर्योधन खड़ा निडर,
क़ुरूक्षेत्र में ये सोचकर,
है उसके साथ भीम,
द्रौण के होते किसका डर.
पितामह भी ये भाप गये,
दुर्योधन के हट से वे हार गये.
सब अपना कर्तव्य निभाये,
फिर पिछे कैसे कर्ण रह जाये.
देख कर कर्ण का दान, ज्ञान
वासुदेव भी ये मान गये,
कर्ण सा संसार में
ना कोई हो पाये,
कोई लड़े मित्रता की ख़ातिर
तो किसी ने प्रण निभाया.
पुराने कर्मों के फल,
सबने इस युद्ध में पाया।
बात सिर्फ़ इतनी सी थी,
संस्कारों की कहीं कमीं सी थी.
राजा धृतराष्ट्र के मन में बैर सी थी,
सकुनी के इरादे गैर सी थी,-
बिखरे हुये मोती, कहीं तो सिमटते होंगे,
होता होगा कहीं कोई दवाखाना,
जहां पुराने ज़ख्मों के मलहम बिकते होंगे.
जो चले गये, वो कहीं तो फिर से मिलते होंगे.
कहीं तो टूटे हुए रिश्ते , फिर से जुड़ते होंगे-
पूरी ज़िंदगी सिर्फ़ एक मसला रह गया
मैं ज़िंदगी की तलाश करता रहा,
और ज़िन्दगी हाथ से फिसलता रह गया।-
मैं एक ख़याल लिखुं , या याद लिखुं,
लिखुं जो भी , तेरा ज़िक्र लिखुं
जज़्बात लिखुं या अल्फ़ाज़ लिखुं
लिखुं जो भी , बस तेरे साथ लिखुं.-
जो रुक गया , वो थम क्यों नहीं जाता
जो पसंद आता ,वो मिल क्यों नहीं पाता,
अजीब रंजिश है ये ज़िन्दगी से
जो भूल गया , उसे भुलाया क्यों नहीं जाता।
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इस शहर में जितनी भीड़ नहीं,
उससे कई ज़्यादा शोर मेरे भीतर है,
ज्यादा कुछ नहीं बस,
दिल का एक टुकड़ा मेरे अंदर है।
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ये ज़िंदगी मुकम्मल किसे है
यहाँ सब कुछ हांसिल किसे है
अपनी कहानी में तो सब अच्छे है
पर अच्छे लगते किसे है.-