Rachit Siddhant   (सिद्धांत)
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Joined 27 November 2018


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Joined 27 November 2018
18 JUN 2021 AT 2:01

उम्मीद का टूटना किसी इन्सान के मर जाने जैसा होता है जिसके बाद ना कुछ बदलता है ना ही बदल पाने का हौसला होता है। इस दुनिया की सबसे भयानक और दर्दनाक होती है उम्मीद की मौत क्योंकी इस मौत के साथ मरता है भरोसा और हिम्मत और साथ ही मर जाता है खुद ब खुद आदमी जिंदा रह जाती है उसकी जिंदा लाश!

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16 JUN 2021 AT 1:23

हर सवाल का जवाब अगर होता तो खामोशी का कोई वजूद ना होता और हर सवाल की अगर जायज बुनियाद होती तो इस दुनिया मे कोई इन्सान बेज़्ज़त ना होता हमारे आस पास बहुत कुछ ऐसा है जिसे लेकर हम सब लोग जजमैंटल होते है और किसी के रोकने पर इसे अपनी बोलने की अजादी बताते हुए उसे चुप करा देते हैं असल मे ये आजादी नहीं है हमारी बीमारी और खालीपन है वरना अगर जज करना इतना आसान है तो इस दुनिया मे सिर्फ इन्साफ ही होना चाहिये नाइंसाफी नहीं!

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18 JUN 2020 AT 1:29

अपनी मनोव्यथा को बाहर निकालने के लिए
व्यक्ति के पास तीन ही माध्यम होते हैं कहना,
रोना या लिखना । जिसमें कहना और रोना
क्रमशः सबसे अधिक प्रभावशाली होते हैं,
परंतु आज कल के समाज में मुख्यतः पुरुष
के लिए यह दोनो ही असम्भव होते जा रहे हैं ।

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13 JUN 2020 AT 23:24

जीवन में उस व्यक्ति से प्रेम करना
जो आपसे प्रेम ना करता हो उतना ही
कठिन होता है जितना एक बच्चे की परवरिश,
और उतना ही सुखदायक भी होता है
जितना की अपने बच्चे की सफलता को देखना !❤️

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13 JUN 2020 AT 0:47

वस्ल का सवाल नहीं हिज़्र में सुकून नहीं
मोहब्बत ऐसी होती है तो हमें क़ुबूल नहीं !

मयकशी तो नहीं आज कोई और बात है
तुम्हारे सिवा ये और कोई सुरूर नहीं !

इतना आगे आकर कैसे छोड़ दें कोई ख़्वाब
मंज़िल और बात है लौट जाना मंज़ूर नहीं !

मैंने चाहा है ख़ुद से ज़्यादा तुमको हर वक़्त
मोहब्बत अधूरी रहे ऐसा कोई दस्तूर नहीं !

वो वस्ल का ख़्वाब ही है जो रात भर जगाता है
तुम्हें छोड़ कर मेरे पास और कोई फ़ितूर नहीं !

-सिद्धांत

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13 JUN 2020 AT 0:35

एक शख़्स से मिल कर ख़ुद को भूल आया हूँ
हक़ीक़त को भुलाकर फ़सानों में सिमट आया हूँ !

वो सारे ख़्वाब जो देखे थे मैंने कई रात जाग कर
बेबस हाथों से आज उन्हें दरिया में फ़ेक आया हूँ !

अधूरे ख़्वाब हो जैसे कंधों पर दीवार गिरी जाती हो
चैन की साँस लेने को उनको दश्त में छोड़ आया हूँ !

हर क़दम पर लगाए थे जो शजर बीते वक़्त में
आज उन पेड़ों के सारे फल तोड़ कर ले आया हूँ !

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25 MAY 2020 AT 14:01

मसर्रत आती है और ऐसे मुझे छूकर गुज़र जाती है
जैसे एक मजबूर माँ अपने बच्चे को बहलाती है !

एक ख़ुमार उतरता नहीं एक सूरूर है जो चढ़ता नहीं
ख़त ख़ाक हुए जाते हैं बोतल ख़ाली हुई जाती है !✍🏻

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28 APR 2020 AT 1:55

ज़िंदा कैसे रहते हैं ये बस हम जानते हैं
मेरे आँसुओ की वजह बस ग़म जानते हैं !

बस एक बात जो दिल में चुभती रही हमेशा
वो तुमसे बेहतर तो तुम्हारे सितम जानते हैं !

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27 APR 2020 AT 18:03

कुछ देर का मसअला हूँ फिर पूरा छलक जाऊँगा
तुमसे बिछड़ कर आया हूँ कहाँ तलक जाऊँगा !

इशारे तुम मत करना कभी चाहे जो हो जाए
मैं सही रास्ते पर भी हुआ तो भटक जाऊँगा ! ❤️

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27 APR 2020 AT 13:16

अंजाम सोचते हैं और डर के लौट जाते हैं
तूफ़ान हमारे परचम को देख कर लौट जाते हैं !

इस बार तुमसे कहना था बहुत कुछ मगर
हर बार की तरह तुम्हें सुन कर लौट जाते हैं !

पनाह की ख़ातिर खड़े है कुछ लोग अजनबी
हवा का रूख एक तरफ़ देख कर लौट जाते हैं !

खुल के जीने के लिए आए हैं कैदख़ाने में मगर
यहाँ क़ीमत इतनी है की सुन कर लौट जाते हैं !

सामान क्या ले जाएँ कोई है ही नहीं अब वहाँ
एक क़दम तो बढ़ाते हैं मगर डरकर लौट जाते हैं !

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