मज़हब के इन न खत्म होते फासलों को जानें कैसे नन्ही हथेलियां तय कर जाती हैं
जुड़े तो पूजा....खुले तो दुआ बन जाती हैं-
अपनी अपनी किस्मत है
किसको क्या सौगात मिले
कहीं खाली सीप मिले
कहीं मोती साथ मिले-
खुशी में हम बस खुश होते हैं... दुख में हम हमारे भीतर उतरते हैं....जीवन को समझते हैं.... लोगों को पहचानते हैं दुख हमें मांजता है हमें इंसान बनाता है हमें कद्र करना सिखाता है दुख हमें बेहतर बनाता है
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रूप रंग और सारे हुनर बेअसर हैं....अगर लफ्जों में नरमी और बात करने के लहज़े में अपनाइयत और गर्मजोशी नहीं है।
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दिन बेसुकुन रहते हैं.....
आज कि फिक्र में।
रातें बेचैन कटती हैं....
माजी की तल्खियों में।
मुस्तकबिल कहीं गुम है....
इस बैचैनी बेसुकुनी की धुंध में।
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दुनिया में उससे साफ़ दिल और रिश्तों की कदर करने वाला कोई नहीं है....जो खुद पर हस सकता है, जो लोगों के मज़ाक बर्दाश्त कर लेता है पर सबसे ज्यादा बैकद्री भी उसे ही बर्दाश्त करनी होती है।
सुप्रभात 🌞-
तू नज्म है मेरी
मैं तरन्नुम तेरा
तू लफ्ज़ बन मेरे
मैं हों जाऊं तर्जुमा तेरा-
खुशमिजाजी की बस एक सूरत है.....
चाहे जिंदगी जीना हो, खाना बनाना हो, गाना गाना हो, नाचना हो....
Rules... Ingredients....Steps....
सब अपनी पसंद के हों....
अपनी मर्ज़ी के हो...-
जब दिल की बातें करो किसी से.....
तब बातें सुनने से ज्यादा,
चेहरे को पढ़ना।
चेहरा पढ़ने से ज्यादा,
आंखों को सुनना।
और सबसे बढ़ कर...
सिर्फ और सिर्फ,
अपने दिल पर यकीन करना।-
कुछ पेड़ इतने घने इतने छायादार होते हैं कि उनके साए में पनपने वाले पौधों को अपने हिस्से की धूप भी नही मिलती। वो धूप जो उनके जीने के लिए जरूरी भी है और उनका हक़ भी।
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