रुसवाई मिलेगी तुझ से ये ख़बर थी
फिर तेरे दिल में घर क्या करते
~आशना खान-
ये इब्तिदा-ए-इश्क़ नहीं, आ चुकी अब बुज़ुर्गी
बाक़ी ना रहे अरमां, हो चुकी अब ग़ारत-ए-ज़िंदग़ी
~आशना खान
-
क्यों अपनी रूह को ना-तवा किए ले रही हो 'आशना'
ये इश्क़ की बाज़ीयां जान लेवा हैं, तुम ज़रा कमज़ोर हो
~आशना खान
-
दिल-ए-मुज़्तर को इन्तज़ार उनका है
आएं कभी वो भी इस ग़म-खाने में
हम ही क्यूं हर रात दीदा-ए-नमनाक में गुज़ारें
~आशना खान
-
कुछ ऐसी तौफ़ीक दे दे मेरे मौला !
शब-ए-तन्हाई में मुझे ख़्याल सिर्फ तेरा आए
~आशना खान-
कुछ ऐसा कह दीजीए के नफ़रत हो जाए
आपसे ये उनसियत बहुत तक़लीफ देती है
~आशना खान-
Mubtila na hue jo ghum me toh
Khuda ko yaad karega kon
Sozish-e-ulfat se na guzre jo toh
Al-Jabbar pr yakin krega kon
-
मेरे जख़्मों को तेरे नाम का मरहम मिल गया है मौला!
इस दुनियावी शिफा'अत में फिर क्यों जाऊं मैं
छलावा है इस जहां की हर इक श'अए
इसकी रग़बत में बरान-ए-अश्क़ क्यों बाहाऊं मैं
होती है रहमत तेरी गुनहग़ारों पे भी
तेरी रहमतों का लुत्फ फिर क्यों ना उठाऊं मैं
-
इन लबों से जो आज ये आह निकली है
तेरे हाथ का लिखा वो कागज़ मिला है-
और तो खैर क्या रहा
उस आखिरी नज़र का दर्द रह गया
सालों गुज़रने के बाद भी-