हे विधाता!
तेरे चरणों में कोटि कोटि नमन है,
तुझसे पूछने को आज ढेरों प्रश्न है।
ज़िंदगियाँ जो तुम देते हो जीने के लिए,
मुकम्मल क्यों नहीं करते सफ़र के लिए?
जैविक न्याय ही ना मिले जब जीवन में,
अंधियारे में दीप कैसे जलेंगे चितवन में?
प्रार्थना सबके लिए है जो ना बचे विमान में,
किन्तु क्या ही भरोसा करें तुम्हारे विधान में?
🙏💮😭-
अज़ीबोग़रीब ख़यालों के पुलिंद बांधे थे मुठ्ठियों में,
सुबह जब हुई तो लकीरें भी न देखी गई आंखों में।-
I use to turn off my brain and just breathe for an hour, being alone in the universe.
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तमन्ना की शिकस्त में इंसान लचर हो जाता है,
उम्मीदों के पहरे को पार करना बड़ी बात नहीं!-
यकायक सा होना बड़ा पेंचीदा लगता है,
मानों आश्रय सारे निराश्रय होने लगते हैं!-
तरकशी तीर मेरे लक्ष्यों को स्वयं भेद आते हैं,
असफलताएं दूर से ही निहारती रह जाती हैं।
दुश्मनी दिल मेरे चक्षु ज्वाला से दहक उठते हैं,
सारी अड़चनें आने से पहले भस्म हो जाती हैं।
मुरव्वत नहीं रहता ज़ालिमों से तकरार लेने में,
मौतें रस्ते से वापस अपने घर को मुड़ जाती हैं।
राजे दिल क्या कहना "तुम जो मेरे सामने हो",
हाथों की तिरछी लकीरें भी सीधी हो जाती हैं।-
"A great mutual understanding develops as they give more importance to each other's unexpressed feelings than to the written words."
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