राम कृपा   (रामकृपा)
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Joined 18 November 2021


Joined 18 November 2021
12 JUN AT 21:02

हे विधाता!
तेरे चरणों में कोटि कोटि नमन है,
तुझसे पूछने को आज ढेरों प्रश्न है।
ज़िंदगियाँ जो तुम देते हो जीने के लिए,
मुकम्मल क्यों नहीं करते सफ़र के लिए?
जैविक न्याय ही ना मिले जब जीवन में,
अंधियारे में दीप कैसे जलेंगे चितवन में?
प्रार्थना सबके लिए है जो ना बचे विमान में,
किन्तु क्या ही भरोसा करें तुम्हारे विधान में?
🙏💮😭

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3 JUN AT 10:19

अज़ीबोग़रीब ख़यालों के पुलिंद बांधे थे मुठ्ठियों में,
सुबह जब हुई तो लकीरें भी न देखी गई आंखों में।

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26 MAY AT 8:28

I use to turn off my brain and just breathe for an hour, being alone in the universe.

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24 MAY AT 16:01

तमन्ना की शिकस्त में इंसान लचर हो जाता है,
उम्मीदों के पहरे को पार करना बड़ी बात नहीं!

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20 MAY AT 19:54

यकायक सा होना बड़ा पेंचीदा लगता है,
मानों आश्रय सारे निराश्रय होने लगते हैं!

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19 MAY AT 10:26

बेवज़ह नहीं होते ज़िंदगी के फ़लसफें,
क़िरदारों को मुक़म्मल होना पड़ता है!

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18 MAY AT 22:13

तरकशी तीर मेरे लक्ष्यों को स्वयं भेद आते हैं,
असफलताएं दूर से ही निहारती रह जाती हैं।

दुश्मनी दिल मेरे चक्षु ज्वाला से दहक उठते हैं,
सारी अड़चनें आने से पहले भस्म हो जाती हैं।

मुरव्वत नहीं रहता ज़ालिमों से तकरार लेने में,
मौतें रस्ते से वापस अपने घर को मुड़ जाती हैं।

राजे दिल क्या कहना "तुम जो मेरे सामने हो",
हाथों की तिरछी लकीरें भी सीधी हो जाती हैं।

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18 MAY AT 11:55

शौक़ रखोगे तो साख बन जाएगी,
बे-मुरीद तख्तों के ताज़ नहीं होते।

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17 MAY AT 17:58

"A great mutual understanding develops as they give more importance to each other's unexpressed feelings than to the written words."

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16 MAR AT 16:31

मुहब्बत का मौसम कभी नहीं जाता,
हर बार नया रूप लेकर सामने है आता।

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