इंसान आहिस्ता-आहिस्ता टूटता है
जब टूटने का दौर ज़ारी रहता है
इस दरम्यान वो खुद को समेटता है
तब फिर से टूटता है ज़र्रा ज़र्रा
इस तरह से अंत में जो बचता है
वो समूचा इंसान नहीं बचता..!!-
जय श्री राधे !!
मेरे शब्दकोश की त्रुटियाँ
मेरी अज्ञानता की पहचान है ।।
♥️♥️♥️🙏🙏♥️♥️♥️