जिसकी लाठी उसकी भैंस
चरितार्थ हो रही है ये कहावत
वर्तमान सियासी गलियारों के
उन सियासतदानों के ऊपर
जो उतर आए हैं तानाशाही में
लोकतांत्रिक जमी पर
नोचने नौजवानों की उपाधियों को
और उन काश्तकारो,फुटपाथों को
जो नित नित फांसी चढ़ते रहते है।
अस्थियों की कलश यात्रा निकालते हैं जो
वोट वोट का खेल खेलते हैं जो
आपदा की व्यथा नहीं सुनते हैं जो
अंधे न्याय को बहरा भी बना दिया जिन्होंने
जनतंत्र के चौथे स्तंभ को उखाड़ दिया उन्होंने
हिंदू मुस्लिम को लड़वा दिया दिया जिन्होंने
आरक्षण की आग में जलवा दिया उन्होंने
इसीलिए तो कहते हैं ना जिसकी लाठी उसकी भैंस।

- राजपूत गोकुल मौरा