राजगुरु मीणा   (राजगुरु मीणा)
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कलम पर भरोसा मत करना,यह मोहब्बत में होते हुए भी पीर लिखना बख़ूबी जानती है!
Joined 31 May 2017


कलम पर भरोसा मत करना,यह मोहब्बत में होते हुए भी पीर लिखना बख़ूबी जानती है!
Joined 31 May 2017

तुम क्या मोल दोगे उसकी मोहब्बत का,,,
बढ़ती उम्र और बदलते जमाने में,
आज भी नाक की बाली न उतार,आंगन में खेलती मुन्नी को जिंदा रखा हुआ है उसने।

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कुछ रिश्ते थे,वही काफी थे..
पल भर की खुशी को।
भ्रूण से सिमटे..सिमाओं में घिरे,
कीमत थी उस पल की भी.,
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पर झलक एक जब उनकी मिली,
पल वो अनोखा..या जरा खास था..
सब कहते है प्रेम उसे,
परंतु मेरे लिए तो मानों पुनर्जन्म सा एहसास था।
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रिश्ते कई नए मिलने लगे,
रास्ते नए कई..वही पुरानी राहों से बनने लगे.,
पुराने किमती पलों की कीमत को,
उन संग बिताए पलों ने चुराया है!
खुद को बेहतर..और बेहतर बनाने की बहती सोच पर.,
सेतू खुद पर खुदी का..उन्हीं की संगत ने बनाया है।
कहीं दूर थे दिल से कभी..
मिलने से उनके,
आज कहीं मन-मधुवन के पास है,
सब कहते है प्रेम उसे
परंतु मेरे लिए तो मानो पुनर्जन्म सा एहसास है।

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*लेकिन स्वरा भास्कर को पेलते रहो !🥴

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जितना कम सामान रहेगा..
उतना सफ़र आसान रहेगा !

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बारिश !

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आखिरी ख़त !

लेख अनुशीर्षक में ...

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मानसून की पहली बारिश,
बूंदों से कम यादों से ज्यादा भिगाती है !🍁

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बस यही सोचकर,
ज्यादा सिकवा नहीं किया मैंने,
कि हर कोई अपनी जगह सही होता है !🍁

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I am sorry i was not good enough,but I tried to be.

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लैला नहीं थामती अब
किसी बेरोजगार का हाथ,
मज़नु को गर इश्क़ है तो कमाने लग जाए ।

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