राज़ एक अहसास  
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Joined 20 November 2018


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Joined 20 November 2018

प्रेम परमात्मा तक पहुँच साधना है...
और यह साधना हर शख्स के बस की बात नही...

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ज़माने की बेरुखी, मुझे कब का तबाह कर जाती...
गर मुझे इन हसीन वादियों से, महकती हवाओं से, उमड़ती घटाओं से और
मेरे ज़िंदगी से
यूँ बेइंतेहाँ मोहब्बत ना होता...

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जब तलक समाज मे परवरिश का तरीका नहीं बदलेगा...
परिवारों मे बेटा-बेटी के मध्य समानता , प्रेम, मोह, प्रजनन, माहवारी जैसे विषयो पे चर्चा नहीं होगा...
जब परिवार के सदस्यों के मध्य दोस्ताना माहौल नहीं रखा जायेगा...
जब तक परिवारों को दारु, नशा, जमीन जायदाद के झगड़ो से मुक्त नहीं किया जायेगा...
जब तक माता पिता बच्चों को पूर्ण समय नहीं देंगे,
खुद नैतिकता का लालन करते हुए बच्चों को नहीं सिखाएंगे...

मुख्य रूप से प्रेम और मोह मे अंतर नहीं बताया जायेगा, समझायेगा जायेगा....

*तब तक समाज मे जो मर्डर, बलत्कार, परिवारिक झगड़े(खून) होते रहेंगे...*

क्योंकि अब तक जितने भी केस हुए सब लोग सिर्फ मोह मे रहते है
क्योंकि प्रेम रूपी साधना करना बहुत कठिन है और यह साधना बहुत कम लोग कर पाते....
प्रेम यानी त्याग, क्षमाशीलता, दया, संयम, सहनशीलता होता है...
और यह नौतिक गुण हर इंसान अपने भीतर समावेश नहीं करा पाता....

समाज को सुधारना है तो खुद को प्रेममय बनाना होगा..😊
वरना....🔥🔥🔥🔥🔥

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प्रेम करने वाले भी अपने, इलज़ाम लगाने वाले भी अपने...
जैसा नज़रियां, वैसे नज़र आएंगे हम...
इसीलिए हर एक नज़रिये वाले अपनों से प्रेम करे...
हर इल्ज़ाम देने वालो को मुस्कुरा कर माफ़ करे...
हज़ारो प्रेम करने वालो के दरमियाँ,
आपको नापसंद करने वाले भी आएंगे...
किसी के दिल तो किसी के मस्तिष्क मे हम जगह जरूर बनाएंगे...
पसंद करने वालो के साथ साथ इल्ज़ाम लगाने वालो से भी रिश्ता निभाएंगे...
सबका अपना-अपना नज़रिया है
बाबू मोशाय...
अब सबका नज़रियाँ हम थोड़े ना बदल पाएंगे...

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हमारी छोरियाँ UPSC में टॉप कर सकती है...
छोरे आराम से घर सम्हाल सकते है...
तकियानुसी तुक्ष सोच वाले समाज के गाल पर अगर
युवापीढ़ी चाहे तो अपने सकारात्मक सोच से
ज़ोरदार तमाचा जड़ सकते है…

नज़रियां बदलिये बाबू मोशाय..🥰
नज़ारे खुद-ब-खुद खूबसूरत हो जाएंगे...

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आहत....

ये शब्द इतना ज़्यादा कीमतविहीन हो चुका है....
ज़रा-ज़रा सी बात पर इंसानो के मस्तिष्क मे घर कर जाता है...
इंसान इस घृणित "आहत" के गिरफ्त मे आकर अपनी खुशियों को, रिश्तों को तबाह कर जाता है..
गलतफहमी को शक्ति प्रदान करता है...
इंसान हो, रिश्ता हो, परिवार हो या संघठन को सबको तोड़कर क्षत-विक्षत कर देता है...

फिर भी ज़रा-ज़रा सी बात पर इंसान आहत हो जाता है...
आहत होकर, क्रोध से भरकर रिश्तों को खंडहर बना जाता है...

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दूसरों की गलतियां हमें बर्दास्त नहीं होती...
ज़रा-सी गलतियों के कारण हम क्रोध से भर जाते है,
झगड़े, बहस, विवाद, FIR तक की बातें कर
उनसे ताल्लुकात तोड़ जाते है...
गलतियों के कारण रिश्तें भूल जाते है हम...
तो फिर रिश्तों के कारण, गलतियाँ क्यों नहीं भुलाते..?

या कभी खुद की गलतियां/बुराइयां पे गौर क्यों नहीं करते...??

राज़-ए-इंसानी फितरत 🙏🏼

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प्रकाशमय शुक्र ग्रह का चन्द्रमा के दरमियाँ शोभयमान होना...
मानो प्रकृति की कोई खूबसूरत दिलकश रुमानी अदा है...
प्रकृति की ये अदा, किसी के लिए रमज़ान का चांद हो गया...
तो किसी के लिए माँ चंद्रघंटा देवी के माथे का चंद्र बिंदु हो गया...

सब कुछ नज़र और नज़रिये का खेल है बाबू मोशाय...
गर आपका नज़रिया खूबसूरत है,
तो ज़िन्दगी का हर लम्हाँ हसीन ही नज़र आएगा...

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गुफ्तगू का आलम तो देखो यारो...
दरमियाँ दूरियों का कब्जा है...
मिलना हो या दरस, दोनो ही नामुक़्क़मल है...
लबों पे खामोशी पसरी है
पर हसीन यादों ने आंखों की नमी के साथ समा बांध रक्खा है...

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मौत के आलिंगन से पहले..
एक नामुक़्क़मल "आरज़ू" जिसे बाहों में समाकर जी रहा हूँ...
कि मै ज़िंदगी के हरेक लम्हातों में महफूज़ मुस्कुराहटों को गले लगा लूँ...
सितमगर ज़िंदगी को अपने प्रेम में दीवाना बना लूँ...
ताकि मौत के रुमानी अहसास से लबरेज़ अघोष के दरमियाँ कोई अफ़सोस, कोई काश शेष ना रह जाये...

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