तुम्हारी बंशी की धुन पर मैं, खुद ही खींची आती हूं
ये क्या धुन बजाते हो कान्हा, मैं खुद को न रोक पाती हूं
ये यमुना की पावन लहरें, तुमको सुनकर रुक जाती है
बहती हुई हवाएं भी, तुम तक आकर थम जाती है
तुमको सुनकर जाने क्यों, एक अजीब सा सुकून मिलता है
ये कौन सा राग बजाते हो कान्हा, जो किसी और से न कभी बजता है
हे राधे ये तुम सा है, तुम्हारे अंदर ही ये बसता है
ये राग तुमसे ही बनता है, तुम पर ही खत्म ये होता है
तेरी याद जब भी मुझे आती है, ये राग खुद ही बज जाता है
मेरे ह्रदय से निकाल ये, तेरे ह्रदय तक पहुंच जाता है
ये सारी सृष्टि इस राग का, अमृतपान कर जाती है
तेरे होने के कारण ही, मेरी वंशी बज पाती है
जो तू न हो पास मेरे, बंसी बजाना छोड़ दूंगा,
तुझसे ही मेरा हर राग है राधे, तुझ बिन जीना छोड़ दूंगा... ❤️।।
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