बिदाई
जाने क्यों ,,ईश्वर ने ये रीत बनाई..
छोड़ना पड़े घर अपना,,, ये कैसी प्रीत निभाई
वो आँगन ,वो कमरे ,वो बाहों के झूले
सब छूट जाता है,,रह जाती है बस यादें..
गैरों से रिश्ता जुड़ते ही ,,,
क्यों सारे अपने हो जाते है पराए..
क्यों सिखना पड़ता है अपनों के बिना जीना
वो माँ की गोदी में सोना, वो पापा की bike पर बैठना
वो भैया संग लड़ना ...न जाने कितनी बातें..
जो यादें मात्र रह जाती है..
वो घडी बिदाई की देख
भर आती है आँखे सबकी
छोड़ कर अपने पिता का घर ..वो घर अपने पति का संवारती है...
अपनों से दूर होकर,,गैरों को अपना बनाना होता है,,,
ये अजब सा रीत हमे निभाना होता है..🙆♀️🥀
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