R Rath   (RRR_रुत)
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rashmiranjanrath23@gmail.com
Joined 4 August 2018


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23 APR AT 19:33

ऐ मेरे रूह-ए-ज़ख्म भर तो जा कभी,
हर दर्द करके ख़त्म उभर तो जा कभी।

आँखों मै जो सावन कैद होके बैठा है,
ऐ नादां, जमीन पर उतर तो जा कभी।

जिन यादों का जड़ फैला हर हिस्से में,
वो बोझ उतार कर सवर तो जा कभी।

एक हाथ मै खंजर दूसरे मै जाम लिए,
घूमा न कर ऐसे ही, ठहर तो जा कभी।

सुना है बुझने लगी है जाँ चिराग़ की,
अगर ऐसा है तो हंसकर तो जा कभी।

एक फ़कीर के गीतों मै सुना है ये मैंने,
होगा हिसाब कर सबर तो जा कभी।

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10 APR AT 12:26

तुम्हारी गोद में चैन से सोना चाहता हूँ,
अब तो मैं नींद भी शायराना चाहता हूँ।

तारों के साये मै चांदनी बन कर बरस,
जहां से जुदा एक अफ़साना चाहता हूँ।

शाम हो तुम राहो और सुहानी रुत भी,
ऐसे सदा मै हो जाऊँ दीवाना चाहता हूँ।

चांदनी उतर आए एक रोज़ छत पे मेरे,
दो दो चांद से हो मेरा सामना चाहता हूँ।

चलो ये मान के तु ख़ाब है ख़ाब सही,
फ़िर भी तेरी सासों को पाना चाहता हूँ।

जिसे तुने अपना जहां बनाया है "रुत",
वो बने जीने मरने का बहाना चाहता हूँ।

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6 APR AT 13:30

एक रोज़ हम मिलेंगे ज़माने के बाद,
बहुत सी बातेँ होंगी बहाने के बाद।

याद है चांद पर कब मिले थे दोनों,
मिलेंगे फ़िर से दिल जलाने के बाद।

अच्छा है ग़मों का सहारा है वरना,
कौन जीता है जहां मै आने के बाद।

तुम आखिरी नहीं उदास दुनियाँ मै,
हस्ते रहते हैं सब टूट जाने के बाद।

जिन के छाँव मै दिन गुज़रता था मैं,
कहाँ जाऊँ वो गेसू हट जाने के बाद।

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30 MAR AT 9:51

तस्वीरें बनाते रहे मिटाते रहे अक्सर,
जिस्म से धड़कनें लूटाते रहे अक्सर।

नज़र क्या बदली नज़ारा बदल गया,
दिल लगाके दिल जलाते रहे अक्सर।

जो ख्वाबों मै आओ तो मुस्कुरा देना,
हम जो मिले लोग सुनाते रहे अक्सर।

चाहतें हैं बहुत और लंबा सफ़र भी है,
फ़िर यादों से हाथ छुड़ाते रहे अक्सर।

सदा के जैसी जहां के कई रंग है "रुत",
रंग बेरंग कर नज़र चुराते रहे अक्सर।

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28 MAR AT 8:31

देख ले बस एक नज़र अबके बरस,
चांदनी भिगाए मेरा घर अबके बरस।

सितारे गुज़रते रहे आसमान से मेरे,
तू आ कभी मेरे शहर अबके बरस।

एहसास की गली मै फैला है अंधेरा,
बनके आ तू नया सहर अबके बरस।

जिन जज्बातों का कोई किनारा नहीं,
उनको मिल जाए लहर अबके बरस।

तू जानती है तन्हाई मुकद्दर मै है मेरे,
तन्हाई धीरे-धीरे दूर कर अबके बरस।

ज़रा मुस्करा दो बसंत के जैसे "रुत",
दिल बंजारा बने समंदर अबके बरस।

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21 MAR AT 15:03

दुनियां में देखे हैं कई गुनगुनाते पत्थर,
कभी कभार मिलते हैं मुस्कराते पत्थर।

दिन की धूप हो या रात की ठंडी छाँव,
हर सदा मै हैं खुदको झुलसाते पत्थर।

घरों के हर एक हिस्से में डलने वाले,
नज़र आते नहीं खुदको लुटाते पत्थर।

मंदिरों मस्जिदों में आँसू देखे हैं बहुत,
कहाँ मिलते हैं एहसास सुनाते पत्थर।

ज़माना है ज़माने की कई सूरतें भी हैं,
हाथों मै है उसके नीव सुलगाते पत्थर।

बेरुखी किसी को सुहाता नहीं है "रुत",
फ़िर क्यूँ लोगों से मिला मुस्काते पत्थर।

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15 MAR AT 9:22

यह बेनाम मुस्कराता दर्द ठहरा नहीं कभी,
जाँ लुटती रही और वक़्त गुज़रा नहीं कभी।

हर मोड़ पे ग़म ढूँढ़ती रहीं लालची निगाहें,
हाल बेहाल फ़िर भी दिल भरा नहीं कभी।

ख़ुदको भुलाके बस यह बात याद करते हैं,
चाहा था जिसे वो दिल पे उतरा नहीं कभी।

दर्द राहों का तमाशाई बनकर बैठा है मगर,
रिश्ते वफ़ाएं दोस्ती से मन उभरा नहीं कभी।

क़यामत पे कहते हो ख़ाब मै दिखा है कौन,
वो ख़ाब वो चेहरे हवा में बिखरा नहीं कभी।

तुम रहे चांदनी रही और मुस्कुराता रहे "रुत",
ईन बेखयाल मुलाकातों पे पहरा नहीं कभी।

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11 MAR AT 8:51

यह कहाँ आ गए मेहरबान चलते चलते,
पैरों मै पड़ने लगे हैं निशान चलते चलते।

जिन चाँदनी रातों मै अक्सर मिलते रहे,
वो रातें न बातेँ हैं दरमियान चलते चलते।

लोग सुनाते रहे, रात भर हम जगाते रहे,
और भूलने लगे हर पहचान चलते चलते।

कब्र से उठकर ढूंढता फिरा एक मुसाफ़िर,
कहाँ कैसे छूटने लगा मकान चलते चलते।

कुछ तो मलाल रहा दरमियाँ हमारे "रुत",
अब होगा नहीं दिल बेईमान चलते चलते ।

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8 MAR AT 10:22

मुहब्बत की राहों का ये अंजाम देखिए,
ग़म को अपनाने का नया पैगाम देखिए।

ढूंढने से मिले न कभी शहर मै मुहब्बत,
कितने हैं बेनाम कितने नाकाम देखिए।

हस्ता चेहरा अक्सर दिख जाता है मगर,
दर्द-औ-ग़म के कितने मिले इनाम देखिए।

बेशक हज़ारों की भीड़ मै चलें फ़िर भी,
कितनी गुज़ारी है तन्हाई मै शाम देखिए।

काश तेरे साथ चलना मुकद्दर होता "रुत",
हर क़दम पे हसरतों का इल्ज़ाम देखिए।

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22 FEB AT 20:40

आते जाते रहे लोग बनतीं रही कहानियाँ,
वक़्त की लहर मै सिमटती रही कहानियाँ।

तन्हा चलना मुकद्दर है फ़िर ना जाने क्यूँ,
नज़र छलती रहीं मिलती रही कहानियाँ।

सुना है के ढूंढने से मिल जाती है मुहब्बत,
रास्ते जुड़ते ही रहे पनपती रही कहानियाँ।

मुसाफ़िर मिले, तार्रुफ़ हुआ, अफ़साने बने,
चांद की रोशनी मै भीगती रही कहानियाँ।

गुमनाम आशिक के कई गुमनाम फ़साने हैं,
पाते खोते नज़ारों मै बसती रही कहानियाँ।

तुम नहीं अकेले वीरानि के तलाश मै "रुत",
जाँ बूंद बूंद बहती रही खलती रही कहानियाँ।

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