ऐ मेरे रूह-ए-ज़ख्म भर तो जा कभी,
हर दर्द करके ख़त्म उभर तो जा कभी।
आँखों मै जो सावन कैद होके बैठा है,
ऐ नादां, जमीन पर उतर तो जा कभी।
जिन यादों का जड़ फैला हर हिस्से में,
वो बोझ उतार कर सवर तो जा कभी।
एक हाथ मै खंजर दूसरे मै जाम लिए,
घूमा न कर ऐसे ही, ठहर तो जा कभी।
सुना है बुझने लगी है जाँ चिराग़ की,
अगर ऐसा है तो हंसकर तो जा कभी।
एक फ़कीर के गीतों मै सुना है ये मैंने,
होगा हिसाब कर सबर तो जा कभी।
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