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मेरी रचनाओं से मेरी रचना ना करें...
Joined 26 February 2020


मेरी रचनाओं से मेरी रचना ना करें...
Joined 26 February 2020
20 JAN AT 23:19






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20 JAN AT 23:10

इक आस है मंज़िल की तो कहीं, कभी न ख़त्म होने वाला सफ़र

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20 JAN AT 23:03

कुछ कविताएँ
मेरे तुम्हारे प्रेम के
केंद्र बिंदु का सानिध्य लिए
स्वत: ही अलंकृत होकर
उन्मुक्त श्रावण सी
बरस पड़ती हैं
जैसे लज्जा का मोक्तिक
आतुर हो पहली बूंद के
स्पर्श मात्र से ही
खिल उठता है
खारे पानी के बीच
वह अनमोल है
पवित्र है
मेरे तुम्हारे प्रेम जैसा
क्यों है न..

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27 NOV 2024 AT 0:31

हर शब्द अर्थ के बिन अधूरा है
और हर अर्थ में उसका शब्द छिपा होता है
बस ऐसा ही मेरा तुम्हारा प्रेम है

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21 NOV 2024 AT 1:26

चीत्कार के बीच अब वो शब्दहीन थी
आंँसू भी गिरे पर अब बंजर ज़मीन थी
सिसक के ठहर गया वो मंज़र सहसा ही
लोग कह रहे शायद वो बड़ी हसीन थी

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3 NOV 2024 AT 20:47

जो समझता कोई तो समझाते उसे
नासमझी से अब क्या सौदा किया जाए

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26 OCT 2024 AT 20:24

कुछ अपशब्द कहे नहीं जाते
वो सार्थक शब्दों के साथ लुका-छिपी खेलते हैं
और खेल खेल में रिश्ते हार जाते हैं

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25 OCT 2024 AT 20:54

कच्ची ईंट की दीवार से रिश्ते, प्राकृतिक आपदा के अपवाद होते हैं,
पक्की दीवारों के कान से गुज़र कर भी बेवजह के अवसाद होते हैं।

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12 OCT 2024 AT 19:18

तुम्हें पता है की मुझे इश्क़ है तुम्हीं से, ख़ैर..
कर दो इज़हार गर है इश्क़ तुम्हें भी किसी से

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26 AUG 2024 AT 15:39

परिस्थितियों और औपचारिकताओं
के बीच इच्छाओं की
सामंजस्यता का
समावेश होना
लगभग न के बराबर है
और अधिकार है कि
अंधकार के पीछे
छिप के हँसी उड़ा रहा है,,
"सब तुम्हारा है..
तुम ही सब कुछ हो"
किताबो में सुसज्जित
स्वर्णाक्षरों की पंक्तियों में शामिल
कुछ प्रेरणा दायक शब्द
स्वतः ही शब्द भंडार में
गुम हो रहें हैं।
हाँ पर विशेष
परिस्थितियों और औपचारिकताओं
के बीच इनका ससम्मान
माल्यार्पण किया जाता है।
धीरे धीरे आग बुझने के करीब थी
सब अपने अपने घर जा रहे थे.!!

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