जो चाटते थे कभी तलवे हमारे ,
आज बग़ावत पर उतर आए है ।
सुना है, आज कुत्ते झुण्ड बना ,
शेर का शिकार करने जंगल आएं है ।।
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में झूठी दलीलों , झूठे वादों से डरता हूँ ,
दिल में खोट , झूठे इरादों से डरता हूँ ।
लोग झूठा वादा कर ,साथ निभाने की बात करते है,
में , किए वादों के टूट जाने से डरता हूँ ।।
खूबसूरत चेहरे में , छिपे रूप कितने है ,
हर रूप चेहरे में , उभर आने से डरता हूँ ।
लोंगो के दिखावे , हक़ीक़त से परे है ,
हक़ीक़त से आँख मिलाने से डरता हूँ ।।
दिन का रंगीन ख़्वाब , बेरंग सा लगता ,
आँख खुलते , ख़्वाब टूट जाने से डर लगता है।
कलियों से टूटा जो फूल गुलाब का ,
अक़्सर मुरझा कर , टूट जाने से डर लगता है।।
दिखावे की मुस्कुराहट , सब गम छुपाए बैठे है ,
गम आंखो से , सब बहाए बैठे है ।
कोई पूछ ना ले , हाल आँखों से बहते ग़मो का ,
हर कोई दिल में , जख्म लगाएं बैठे है ।।
प्यास लगी , हाथों में बोतल थी शराब की ,
पीता कैसे , जो याद दिलाती थी आप की ।
पीता तब भी मरता , ना पीता तब भी मरता ,
पी कर मरा , बस यादें थी साथ आपकी ।।
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तेरी मोहब्बत मेरे हक़ में नही ,
तेरी नफ़रत ही काफ़ी है , उम्र गुजारने के लिए।।-
क्यों मोहब्बत में दिलो का खेल होता है ,
दिल का दिल से , दिलों का मेल होता है।
कुछ टूटकर बिखरते नाज़ुक शीशे की तरह ,
कोई पास होकर भी , मोहब्बत में फेल होता है।।
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हर किसी ने साथ छोड़ा , इस जिंदगी के सफ़र में ,
बस एक तन्हाई ही थी , जो साथ देती रही सफर में।
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ज़ख्म की दवाएं , ढूढों ,
सांसो की हवाएं , ढूढों ।
हर -दिल जख़्मी है , यहाँ ,
ज़ख्म की वज़ह , ढूंढो ।।
जो मिटा , उसकी राख ढूढों ,
गिरते पत्ते ,की शाख़ ढूढों ।
मिटे अंधकार जिससे मन का ,
प्रकाशित , दीप राग ढूंढो ।।
निराशा में आशा , ढूढों ,
हरकर जीतने का पांसा ,ढूढों ।
हार-जीत परिणाम खेल के ,
ख़ुद को दो , वो दिलाशा ढूढों ।।
किताबो में , ज्ञान ढूढों ,
महफ़िलो में , मान ढूढों ।
जिंदगी चंद लम्हें की , अमानत ,
चंद लम्हों के ,एहशान ढूढों ।।
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हर - मन में जागा ये क़हर कैसा है ,
नफरतों से भरा ये शहर कैसा हैं ।
मोहब्बत को मिटा , नफ़रत पनप रही ,
शांति में , ये आशांति का ज़हर कैसा है।।
जलाकर आशियानें , सुकून कैसा है ,
रंजिश में बहाया , वो खून कैसा है ।
मज़हबी नफ़रतें , शामिल हवाओं में ,
नफ़रती लोंगो का , ये हूजूम कैसा है ।।
शहर मोहब्बत के , वीरान कैसे हैं ,
बने नफरतों के , शमशान कैसे हैं ।
नफऱती आग , जलाती मोहब्बत को ,
बिना मोहब्बत के , इंशान कैसे हैं ।।
बसे शहर , आज खाक़ कैसे हैं ,
बिना जले , आज राख़ कैसे हैं ।
जहन में , फैलाए कुछ राग नफरती ,
ये बेसुरे , शहर में राग कैसे हैं ।।
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अक़्सर हर ग़लत काम के लिए ,
अंधकार का सहारा लेते देखा है , लोगों को
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कितने रंग बदलते हो आप ,
बस आज हमारे संग गुलाल खेलों ना ।
(Happy Holi)
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