कोई मुझे कहे मां को लिखना है.....🤔
पर क्या लिखूं मां को जो स्वयं मेरी शिल्पकार है...
फिर भी कुछ लफ्ज़ है, कुछ जज्बात है , कुछ दिल के अल्फ़ाज है .....
एक अनसुलझी,अनगढ़ी सीरत को भी जो सूरत देदे वो ऐसे कलाकार हैं .....
जो अंधेरों में भी अंधेरे से पाठ पढ़ा रोशनी की किरण दिखला दे ऐसी समझदार है .....
तुलसी के सामने जलते पवित्र दीपक से जो त्याग का महत्व दिखला दे वो ऐसी रचनाकार है ......
बरगद का पेड़ जो मजबूती से खड़ा है उसकी झुकी टहनियों से सब्र का , झुकने का हुनर सिखला दे, ऐसी शिक्षा की जानकार है.....।।
अपने ही अक्स में मैं मां को निहारती हूं....
मां की महक में अपने वजूद को निखारती हूं....
अक्सर दर्पण मुझे त्याग की कहानी कहता है....
वह मुझे मां को कहता है.....
बहते आंसुओं को हर रुमाल कम पड़ जाए जब मां का पल्लू मिल जाए....
सिर से सारी मुसीबत हट जाए जब मां की दुआ गजब कर जाए....
अरे! खुद खुदा बेरोजगार हो जाए, मेरी किस्मत को देखकर ईर्ष्यालु हो जाए जब बिन मांगे हर मुराद मां से पूरी हो जाए......।।💖🌼💎
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