थोड़े से मसरूफ क्या हुए जिंदगी की उलझनों में
हमारे तो शब्द ही हमसे खफा हो गए..-
1sec me बिना पढ़... read more
टूट कर बिखर गया
बिखर कर टूट गया
इस जालिम ज़माने में
फांसी पर झूल गया..-
मेरे तमाम शब्द कुछ अच्छा लिखने को भटकते रहे
जो अब तक गुज़ारी है जिंदगी उसमे प्यार के पल ढूंढते रहे..
जो आपने किया है उसकी खुशनसीबी है हमारे लिये
पर आज मेरे सवाल, जबाव की उम्मीद मे भटकते रहे..
पता नहीं कितना चाहते हो आप हमे
पर मैं माथे की चुंबन वालीं, हाथो की hug वालीं मोहब्बत के लिए तरसता रहा..
घर से दूर अकेलेपन को देख मेंने शब्दों का सहारा ले लिया
पर मैं आपके अकेलेपन के सहारे की दास्ताँ सुनने को भटकता रहा..
किससे तो कुछ-एक बना लिए , बातें करने को
पर इस digital युग में दिखाने के लिए एक तस्वीर को हमेशा भटकता रहा..
सायद मुझे पता नहीं मतलब खामोश मोहब्बत का
इसलिए अपनी एक-दो फोटो के लिए, आपको इधर - उधर ढूंढता रहा..
-
उस शहर,उस गली मेरे कुछ अपने बसते है
जिसका का पता मैं आज तक तलाशता रहा..-
बहुतों को लिखते देखा है,
पर कोई likes के लिए लिखे
तो कोई comment के लिए..
हमने आप को बहुत समय से पढ़ा है
आप बिना स्वार्थ के उम्दा लिखते हो...
Gud keep on...-
आँखों में झलकता शर्म का गहना देखा है
आप हमारी क्या पूछो
हमने तो इस घमासान भीड़ में तुम जैसा यार देखा है..-
इतने मसरूफ थे जिंदगी की उलझनों में
ख़त तो लिखा,परन्तु गलत पते पर..-
उनकी बातों में इश्क़ को ढूंढ लेता हूँ
तभी तो उनकी दूरी बहुत खल जाती है मुझे..
-
चाहत वाहत तो जैसी है, ठीक है
पर हम किसी की मर्जी को
अपनी किस्मत नहीं बनाना चाहते..
-