Qumrul Hoda   (Qumrul hoda "कमर")
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Joined 24 November 2017


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Joined 24 November 2017
30 OCT 2023 AT 21:48

खामोशी से रहो तो ही गुज़ारा है आजकल,
क्या बताऊँ दस्तूर ए ज़माना यही है आजकल।

हर कोई जीता अपने लिए,अपनी ज़िंदगी आजकल,
नहीं है कोई यहाँ शख्स अपना या पराया आजकल।

एहसासात अपने तक ही महदूद रखो आजकल,
किसी के साथ रहना,किसे गवारा है आजकल।

अपने दोस्त अहबाब से सहारा लेना न आजकल,
सब हैं मशरूफ ज़मीन पर गिराने को आजकल।

हमारे भी ठाठ, सर पर ताज थे कल तलक,
किस्मत ने ही गुमनाम किया है हमें आजकल।

न दोस्त अहबाब हैं,न कोई अपना इस शहर में आजकल,
क्या बताऊँ "कमर"सिवाय तन्हाई के कुछ नहीं आजकल।।

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30 SEP 2023 AT 22:09

जिसे कहते हैं हम किश्मत अपना,वो हमारा है कहाँ,
जिस पर यूँ मेहनत कर रहे,वो हमारा मुस्तकबिल है कहाँ।।

हर तरफ छाया अंधेरा है, जिसे ढूंढते वो रोशनी है कहाँ,
इस जहाँ में तुम बताओ , अब हमारा गुज़ारा है कहाँ।।

अब आ गए हैं, तो इस कशती से बाहर जाना है कहाँ,
बनाना है अब इसे ही अपना,रास्ता दूसरा हमारा है कहाँ।।

डूबेगी कशती तो हम भी डूब जाएगें,किनारा है कहाँ,
गर्दिशों में खो गया है,अब मन में भी डर बचा है कहाँ।।

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27 NOV 2022 AT 21:03

मुझको यकीन है वो जहाँ जाएगा
मेरे बिना वो खुशी-खुशी रह जाएगा,
न उसे मेरी तलब होगी,न खुद की खबर बताएगा
यकीनन वो अपने लोगों में मशरूफ हो जाएगा।।

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24 MAY 2021 AT 16:01

मेरी आरज़ू नहीं "कमर" मैं जीत जाऊँ
हार भी जाऊँ मगर इमान में रहूँ।।

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16 JUN 2021 AT 16:13

नहीं-नहीं उसने कुछ नहीं किया मुर्शिद
मैंने ही उसे,खेलने को दिल दे बैठा ।।

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13 JUN 2021 AT 12:32

तुम्हें अगर जाना हो, तो बेशक चले जाना
वजह बना कर नहीं,वजह बता कर जाना

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8 JUN 2021 AT 13:25

मैंने तुम से कहा न, ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता
मैं हर रोज़ झूठे वादों पर ऐतबार नहीं कर सकता

तुम्हारे यूँ हज़ार बार बहाने बनाने से क्या होता
लाज़िम है,मैं बहाने को हक़ीक़त नहीं मान सकता

यक़ीनन , मैं मोहब्बत में तुझसे मुद्दतों से मुब्तिला हूँ
लेकिन,तेरी दीवानगी में,दिल का कत्ल नहीं कर सकता

तुम्हारे लफ्ज़-लफ्ज़ , तुम्हारी तबस्सुम बनावटी हैं
बुनियाद पर इनके,मैं ख्वाबों का महल नहीं बना सकता

तुम्हारी फितरत में शामिल है,हर दिलों में जगह बनाना
चाहकर भी तू मेरे दिल में ठिकाना नहीं बना सकता

मेरी गैरत, मेरा ज़मीर गवारा नहीं करेगा "कमर"
मुनाफिक़ हो कोई,मैं उसे हमसफ़र नहीं बना सकता।।

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6 JUN 2021 AT 17:38

मैं सीने से दिल निकाल कर कदमों में रख सकता हूँ
लेकिन ,मुझे हाथ फैलाने की आदत नहीं "कमर" ।।

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6 JUN 2021 AT 16:59

उसे लगता है मैं भटका मुसाफ़िर हूँ "कमर"
ख़ैर वजाहतें क्यों दूं,भटका है तो लगता है।।

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1 JUN 2021 AT 9:25

मुसलसल एक ही ख़्वाब परेशान करता रहा
शब गुज़र गई,सहर भी दर्द-ए-फ़ुर्क़त में रहा

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