क़ायनात Adil  
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Joined 4 October 2019


Joined 4 October 2019
24 NOV 2024 AT 18:02

थी रौनकें ही रौनकें सिर्फ एहसास से जिसके
उसके जाने की ख़बर से मेरा बज़्म-ए-शहर वीरान हो गया !

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19 APR 2024 AT 9:51

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Not for your community.





Jai Hind
Jai Bharat🇮🇳

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23 AUG 2022 AT 19:27

रास्तो से कह दो न डराए हमें इन मोड़ो से ।
ऐसी तिरछी सड़को से पहले भी गुज़र चुके हैं हम।।

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14 JUN 2022 AT 16:15

ख़त्म इन आँखों का मेरी इंतज़ार हो जाए ।
काश ! मुझे भी ऐ दिल प्यार से प्यार हो जाए ।।

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18 MAY 2022 AT 20:42

loyalty is priceless,
Don't waste it on those who doesn't
deserve this.

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30 APR 2022 AT 19:49

Loneliness doesn't not affect you
Until you are affected by loneliness
Time has power to heal all your pains, so keep moving !
Live like a living thing and stop this craziness.

You are the best creation of God !
He didn't create you to see your madness
Love yourself & enlighten your inner soul,
It's only you who can convert your loneliness into boldness.

Everyone has come alone & definitely will go alone
So what is the reason of your sadness ?
Life is priceless, don't waste it here and there,
Just hold the brush tightly &
Embrace yourself with the colours of gladness.

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27 MAY 2021 AT 9:59

दो पल की ज़िंदगी का बस ये है फ़साना
गिर के संभलना संभल के फ़िर गिर जाना !

मुद्दतों बाद हुई ख़ुद से मुलाक़ात तो ये जाना
न कोई अपना इस जहाँ में न कोई बेगाना !

क़दम क़दम पर यूँ रंग बदलना रिश्तों का
सिखाता हैं मर-मर के जीना जी कर मर जाना !

दिल में समां के ख़ामोशी से कुचलते हैं जज़्बातों को
हुनर एक है सबका साहब! कौन अपना, कौन बेगाना !

कुछ छीना तो बहुत कुछ दिया भी है इस हयात ने
क़ाबिले तारीफ़ है इसका हर दर्द , हर नज़राना !

चल रही हूँ ज़ख़्मी दिल लिए, तलाश-ए-मंज़िल के
कहीं तो मुक़म्मल होगा "क़ायनात" का भी अफ़साना !

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14 JAN 2021 AT 11:19

थोड़ी ज़िद्दी, थोड़ी अल्हड़, थोड़ी सी मग़रूर हूँ ।
न मानो तो पत्थर, मानो तो कोहिनूर हूँ ।।

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15 JAN 2022 AT 18:40

इस तरह लोग मुझे अपनाने लगे हैं ।
जीते-जी ही अब मुझे दफ़नाने लगे हैं ।।

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20 DEC 2021 AT 17:18

फैशन के इस दौर में दुपट्टा संभाल कर रखती हूँ
हया की चादर में लिपटे कुछ जज़्बात रखती हूँ
हाँ ! थोड़ा अलग मिज़ाज रखती हूँ।


कहीं बिखर न जाऊं किसी अनजान डगर पर
यही सोचकर, हर क़दम संभाल कर रखती हूँ
हाँ ! थोड़ा अलग मिज़ाज रखती हूँ।


मेरे चेहरे को नहीं किसी हिजाब की ज़रूरत
मैं नज़र का पर्दा कमाल रखती हूँ
हाँ ! थोड़ा अलग मिज़ाज रखती हूँ !


इश्क़ का बाज़ार मुझे भाता नहीं, बेहयाई से जीना आता नहीं
दौर-ए-जहालत में भी अपना अलग मुक़ाम रखती हूँ
हाँ ! थोड़ा अलग मिज़ाज रखती हूँ !


मेरा किरदार है शान मेरी, ये आन है पहचान मेरी
बातिल एहसासो से ऊपर, मैं अपना हस्सास रखती हूँ
हाँ ! थोड़ा अलग मिज़ाज रखती हूँ !

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