प्यास-ऐ-हवस (EROTICA)   (yqdrfate✍️)
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Joined 7 April 2020


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Joined 7 April 2020

प्यास आरज़ू की भीगे लबों से शुरू हुई,
मदहोश तलब दो जिस्मों संग,
लम्स की सौगात उस पल को दे चली,

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कुछ अल्फ़ाज़:-

"माज़ी जो रूबरू हुआ,
गुफ्तगू कुछ गहरी हुई,
मेरी तमाम आरज़ू बेआबरु हुई,
मसला प्यास का जो हवस बन चुका,
मेरी आदतों में शुमार हुई,"

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लम्स का मज़ा,
मज़ा ही रहने दो।
लम्स की बात,
यादों की खुमारियों में रहने दो।

बस लम्स के ख्वाब को,
हकीकत संग मेल होने दो।

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तलब का कुछ गहरा सा असर है,
हर लम्हा,हर पल बस चुदाई की तड़प है,
चुदाई की हो चाहत,चुदाई की हो इनायत,

जिस्म संग अधूरा हूँ मैं,
नंगे जिस्मों की आरज़ू है बस,
नंगे जिस्म संग चुदाई से ही पूरा हूँ मैं,

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ना पूछो जोश है कितना,जुनून है कितना,
चुदाई के लिए,जिस्म मदहोश है कितना,

मेरी हवस के आगे,
तुम्हारे होशो हवास गुम हो जाएंगे,
तेज़ झटकों पे सवार,होके सुबहे से शाम तक
जन्नत के मज़े लम्हों में कैद हो जाएंगे,

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कुछ अल्फ़ाज़:-

"दिल से जुड़ी चाहत बेहद खास है,
हर लम्हा सिर पे जुनून बन के सवार है,

बस चुदाई,सिर्फ चुदाई,
रात को चुदाई ही चुदाई,चुदाई की आरज़ू
बेइंतेहा मेरी धड़कनो का एहसास है,
चुदाई ही मेरी भूक,चुदाई ही मेरी प्यास है,"

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जब भी चुदाई की तलब बढ़ जाती है,
लिबाज़ संग दुश्मनी सी हो जाती है,
चाहत तो बस जिस्मों से है,

नंगे जिस्मों की गफलत,
ख़्यालों में बढ़ जाती है,
मैं और मेरे होने का मज़ा,
मेरी धड़कनों को रंगीन कर जाती है,

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रात से ना पूछो नवाबी ख़्यालों की,
किस्मत से गरीब है,
पर चुदाई की चाहत की तलब में,
लिंग हमेशा खड़ा रहते है,
अपनी ही ज़िद पे अड़ा रहता है,

टूटी लकीरों का फैसला कहाँ मानता है,
जिस ज़िन्दगी में चुदाई का अकाल सा हो,
वहाँ लिंग पे जुनून हमेशा सवार रहता है,
वक़्त के बदलने का इंतज़ार रहता है,

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जब दिल टूटा है,आँसुओं की सौगात,
ज़ेहन संग गम का गहरा रिश्ता है,
पूछो ना क्या हाल होता है?

मैं,तन्हाई,और
हस्तमैथुन संग रिश्ता और बढ़ता जाता है।

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कुछ अल्फ़ाज़:-

"दर्द-ऐ-ज़िन्दगी की दवा क्या है?
टूटा दिल,फूटी किस्मत से लकीरें कब जुदा सा है,
भारी दिल,बोझल साँसें,
बेहाल लम्हो के सिवा बदहाली के दिया क्या है,

बस सुकून के पल नंगे जिस्म से मिलते है,
जब हम चुदाई के ख़्यालों संग गुफ्तगू करते है,
जननांगी(योनि) को खूब रगड़ते है,
जननांगी(योनि) संग खूब खेलते है,"

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