अपनी हर उम्मीद को दफ़नाया है।
हाँ अब तेरे इंतज़ार पर मैंने
“ पूर्ण विराम “ लगाया है ।-
समेटे सारा प्रेम
वो तेरी चोखट पर खड़ी है।
की तुम्हारी बाँहो में उसे अब
अपना घर नजर आता है।-
कहीं एक हथौड़ी की मार
से बनी एक सुन्दर आकृति
वहीं प्रेम में पड़ी मार ने एक
स्त्री को पत्थर बना दिया।
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मुट्ठी में बंद रेत नहीं, मैं मेहँदी की तरह हूँ।
खुलकर, झड़कर, धुलने के बाद भी
छोड़ जाऊँगी जीवन में तुम्हारे
कुछ “प्रेम की स्मृतियाँ“-
मैं जब जब चाहूँ के प्रेम लिखूँ
पर ना आगे कभी बढ़ पाती हूँ
कोई ग़ज़ल लिखे, कोई लिखे कविता
और मैं बस नाम तेरा लिख पाती हूँ।
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वो और उस से जुड़ी सब बातें
कभी कुछ मेरे बस में नहीं रहा।
ना उसका आना रोक पाई थी।
ना उसको जाते को रोक पाई थी
ना रहा हाथ में की रोक लूँ दिल को
उसी से प्रेम करने से।
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हर ख़्वाब को सच कर जाता है।
उसका सपने में आकर मुझमें
खुद की ख़ुशबू का छोड़ जाना।-
चलो आऊँ ,कुछ जलाऊँ
अब पिघलाऊँ उसे
हाँ तेरा दिया दुःख अब
जम के पहाड़ हो गया है-
घने अँधेरो में भी
हमेशा साथ था जो
मेरी माँ के बाद बस
“महादेव” का हाथ था वो-
मेरे जीवन के बोले गए
कई झूठों में से सबसे बड़ा झूठ था।
जब मैंने तुमसे कहा था।
की “मैं नफ़रत करती हूँ तुमसे”
और सबसे बड़ी मजबूर मैं तब थी
जब मैंने रोक दिया था वो प्रेम
जिसकी एकमात्र मंज़िल थी।
“ तुम्हारा हृदय “-