जो बीत गया वो बात गई
अब दिन निकला और रात गई
कल कौवा शोर मचाता था
अब कोयल मीठा गाती है
जो तितली छुपकर बैठी थी
वो फूलों मर मंडराती है
इस चिड़या को देखो
चूं चूं ची ची कर करके नया सवेरा लाती है
जो सूरज कल तक डूबा था
आज नई उम्मीदें लाया है
पतझड़ भी बीत गया
अब नई बसन्ती आई है
पेड़ों की टूटी डाली भी
अब नई कोपले लाई हैं
बिस्तुइया की नई पूंछ
देखो कैसे लहराई है
सब चीख चीख कर कहते हैं
कुछ नियत नही है जीवन मे
इस दुर्गम जीवन के पथ पर
जो हँसता हँसता जाता है
लक्ष्य भी देखो उसका कैसे
इक दिन उसको मिल जाता है।
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