जब ख़ुद से प्यार हो
खुद से मिलने को दिल बेकरार हो।
मंजिल ग़र बस 'सुकून' हो
बेमतलब की बातों से दिल दूर हो।
अपनी भी फ़िक्र हो
ख़ुद को पहले जानू ये भी जिद्द हो
फिर तन्हाई के रास्ते को
जोड़ता अपना एक संसार हो।
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दिल की राहों में बरसते बेबाक़ से काटें
जुटना कम यहाँ सिर्फ टूटने के हैं फ़ेरे,
सब हैं समझदार, नासमझ हम अकेले
दिल्लगी के बाज़ार में बस दर्द हैं हमने झेले।
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बिखड़े अल्फाज़ो को सहेज ले
दिल के बेचैनियों को जो तह दे
मरती जुवां को जो सह दे,
वैसी दोस्त ख़ुदा तू मुझे दे।
हैप्पी फ्रेंडशिप डे🙂-
क्या ज़रूरत था
ख़ुद से इतना दूर जाने का
खुद को खोकर ही सब भुलाने का...
तंग होगे तुम ही अकेले
बातों से सहारे भी कोई देगा क्या
मतलबी है दुनियाँ में सब
फिर क्या जरूरत था
खुद को गवानें का...
दुनियाँ का रिवाज़ है बदल जाना समय के साथ
बेहाल होगी तेरी जिंदगी,
लोग तो हालातों से भी बेख़बर होंगे
फिर क्या जरूरत था
संसार के इस रवैये को झुठलाने का...।।
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दे सुकून के दो चार पल,
पर कहाँ पता था हमें कि
चुभ जायेगी इसे
हमारे कहे छोटे से लफ्ज़।— % &-
सपनों की दुनियाँ
एक ऐसी दुनिया जहां सिर्फ प्यार होता
लोग समझते एक दूसरे को
किसी का जीवन मज़ाक ना बनता
सबका सम्मान होता, स्नेह होता
शब्दकोश में ईर्ष्या जैसा कोई शब्द ना होता
तो कितना अच्छा होता!!
सबों को समान दर्जा भी मिलता
काम के आधार पर सलूक को ना बांटा जाता
जाति का आधार लेकर लोग ना बटते
किसी को अत्याचार ना सहना पड़ता
सभी को समान अवसर मिल पाता
तो कितना अच्छा होता!!
दुश्मनी छोर लोग दोस्ती का हाथ बढ़ाते
पीछे खींचने के बजाय, उभरने में सहयोग देते
कामयाबी की सीमा सभी को मिल पाता
धोखेबाजी छोर कर अपनापन आ जाता
सभी ईमानदारी की नीति अपना लेते
तो कितना अच्छा होता!!
गरीब हो या अमीर, जीवन सभी का सरल होता
मानवता भी ज़िन्दा रहती, विश्वास भी अजेय होता
लोग तकलीफ के साथी बनते, खुशी का मान बढ़ जाता
ना कोई भाग्य को कोसता ना ही कोई दुःखी होता
लालच के परे एक छोटी सी दुनिया होती
तो कितना अच्छा होता!!
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जब....!!
दिल की गहराई तक दर्द भर जाए,
की गई सारी कोशिशें नाकाम ही जाए,
जीवन में तकलीफें बेसुमार हो जाए,
सहनशक्ति भी समझो विफल हो जाये।
फिर कैसे...???
कुछ भी अच्छा सोचा जाए,
खुद को ख़र्च होने से बचाया जाए,
दिल में सकारात्मकता जगाया जाए,
औऱ बिखड़ती जिंदगी को संभाला जाए।-
दिल के बेचैन हालात को,
तुझे देखने के एक आस को।
मेरी बराबर चमकती मुस्कान को,
तेरे लिए धड़कते धड़कन को।
तेरी एक मुलाकात को,
मेरी बेपनाह सी चाहत को।
लफ्ज़ जो मैं कह नहीं पाई,
आँखे जो सब बयाँ करती है।
तुम महसूस तो करो जरा,
तुम महसूस तो करो जरा।-
दूर दूर तक सन्नाटा सा
आहटें भी ख़ामोश से हैं!
आवाज मानो डरी हुई सी
दर्द तो उफ़ान पे है!
मरहम भी कोई मुझसा नही
शिकायतें तो सभी को है!
पर कोई समझे मुझे
ये भी अब उम्मीद नही है!
रात की खाली पगडंडी पर भी
ख़्वाब भी अब गुमशुदा हुए!
न कोई तमन्ना न चाहत किसी की
मानो जिंदगी भी रात जैसी ही है!
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नाराज़गी हो तब तो मनाया जा सकता है,
लेक़िन मन भर गया हो तो बात अलग है।
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