मैं ठेहरा हूँ एक शाम सा
उल्फत मेरा अहंकार प्रिय
मैं बेढंगी क़िरदार सा
तुम खोई मेरी श्रृंगार प्रिय
मैं संकोच हूँ अख़बार का
तुम शब्दों की अलंकार प्रिय
मैं खुमार हूँ उस सांझ का
जिस सांझ में तू शुमार प्रिय....-
तुम आओ तो संग अपने सहर ले आना
मुठ्ठी में मोहब्बत और जुल्फों से क़हर ले आना
मैं बैठा हूँ डेहरी पर, मूंद आँखें अपनी
तुम आओ,तो संग अपने फ़िरदौस ले आना-
मैं सेहरी की दुआ सही
तुम इफ्तार की थाली बन जाना
मैं मुख़्तसर मुलाक़ात सही
तुम लंबी सुखन बन जाना
कभी तो इज़हार किया कर इश्क़ अपना, ए!!मुसाफ़िर
फिर चाहे बोलकर तू अंजान बन जाना....-
कहने को एक नज़्म लिखूं
तस्वीर सिर्फ़ तुम्हारी हो
कागज़ पर मेरे हर लफ्ज़ लिखूं
तौसीफ सिर्फ़ तुम्हारी हो
मैं सहर लिखुं तुम सांझ कहो
बातें सिर्फ़ तुम्हारी हो
मैं बड़बोला बेबाक लिखूं
तुम ठहरी हुई कहानी हो
मैं प्रिय लिखकर नाम लिखूं
तुम उल्फत की निशानी हो
तुम जैसे मंजर इश्क का
इफ़्तार की मेरे थाली हो....-
मुठ्ठी में सितारे नहीं बस वक़्त ले आना
मुझे मोहब्बत के वादे नहीं सिर्फ हर्फ चाहिए
सारी सहर तो काट ली तन्हाई में
अब बस हर सांझ फ़क़त तू चाहिए....-
हक़ीक़त में नहीं तो फ़िरदौस में मिलना होगा
शायद सदाक़त में नहीं अब ख्यालों में मिलना होगा
हम तश्ना बिस्मिल रहे दीदार को तुम्हारे
शायद तेरी सीरत से भी सिर्फ़ तसव्वुर में मिलना होगा....-
जुस्तुजू में निकले थे फ़ज़ीलत की आस में
फ़क़त तेरी नजरें ही काफी थी मुकद्दर ए हयात में....-
वक़्त को बाहों में रख
हमने फिर संभलना सीखा था
तुमने जो जुल्फें उठाईं
हम लड़खड़ा कर गिर गए
अक्स को यादों में रख
हम बेखुदी में निकले थे
तुमने जो पलकें उठाईं
हम फिर ज़मीन पर गिर गए
हर्फ को होठों पे रख
हम ख़ामोशी से निकले थे
तुमने जो नज़रें मिलाईं
हम ख़्वाबों पर ही थम गए....-
साहिर सी आँखें तुम्हारी
सराब सी क़ुर्बत है
सहर सी मुस्कान तुम्हारी
बेढंगी उल्फत है
बिस्मिल सी तलाश हमारी
सुकून तेरी सीरत है
मुसर्रत ए हयात हमारी
बस तेरी ही उल्फत है
बड़बोली सी बातें हमारी
बेबाक तेरी ज़ीनत है
आरसी सी शफाफ तुम्हारी
मोहब्बत ही ग़नीमत है....-
मेरे हर सवाल का जवाब तू
हर नज़्म का आग़ाज़ तू
तू कहे तो लिख दूं सौ अफसाने उल्फत के
हर पन्ने पे तेरा नाम हो
हर कहानी का क़िरदार तू....-