रोशनी थी तो कुछ गैर भी अपने हुआ करते थे ।
ज़रा सा अंधेरा क्या हुआ,कुछ अपने भी गायब हो गए..।।-
आंखों का दरिया समंदर से गहरा...
मगर दिल का दरिया मृगतृष्णा था उसका..।।-
किसी ने खो दिया हीरे को पत्थर जानकर,
किसी ने पत्थर की कीमत में हीरे को पाया है..।
हीरा क्यों कहे कि उसका मोल लाख टका,
जिसने जाना उसका तेज़, उसी ने उसको पाया है..।।-
कहानी कुछ और थी और कहा कुछ और,
निगाहें कहीं और थीं और निशाना कहीं और,
जब समझे तो मालूम हुआ.....
बेगम बेगानी है और बादशाह कोई और ।।-
नमाज-ए-इश्क को पढ़ते हैं हम मोहब्बत की मस्जिद में..
सत्संग प्रेम का करते हैं हम कन्हैया के मंदिर में...
चाहत है हमारी हर, कान्हा को राधा मिले...
राधे-राधे करते हैं हम मोहब्बत की इबादत में..।।-
किसी ने हमसे पूछा...,
मोहब्बत के मर्ज की दवा क्या है।
हमने कहा,
हकीम साहब को खुद ही बुखार 104 है, मोहब्बत के मर्जी की कोई दवा नहीं है ये लाइलाज है😂😂।।
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राह में तेरी बंजारा मैं हुआ,
मोहब्बत से मोहब्बत हुई मुझे..
फिर मोहब्बत मैं तेरी मोहब्बत का मारा मैं हुआ,
रूठ गईं मुझसे मंजिलें मेरी,मोहब्बत में तेरी बेसहारा में हुआ ।।
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बारिश की बेवफाई को में कैसे बयां करूँ..,
कभी तो मरहम-ऐ-इश्क का नजराना ये लाती है..,
कभी जब ख्वाहिशें रोती हैं मुझमें,
तो दर्द-ऐ-इश्क़ का शवब बन आँखों से झर जाती है ..।।
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मैं तुम्हारी खुशी को खुदा मानता हूं,
तुम्हारे मेरे रिश्ते को बेइंतहा मानता हूं,
तुम चाहे भूल भी जाओ रिश्तों की अहमियत....
मैं अहमियत को तुम्हारी बखूबी पहचानता हूं..।।
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