Pushkar Dwivedi   (पुष्कर द्विवेदी)
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Joined 12 November 2019


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Joined 12 November 2019
17 MAR 2022 AT 12:29

सियासत की डगर में सब को सब कुछ सहन है
ये जहां डूबा है नशे में कितने विकारों का गहन है
होलिका तो जल रही पर प्रहलाद आग में झुलस रहे
राजा का शौक बरकरार रहे खैर आज होलिका दहन है

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16 FEB 2022 AT 22:27

मैं कैसे कह दूं की मैं मुकम्मल हो गया हूं

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2 SEP 2021 AT 17:49

इक बार फिर हुनर से भरा बाग छट गया
इक बढ़ता हुआ पौधा फिर से कट गया
जैसे तुम गए ऐसे भी कोई जाता है क्या
आज फिर इस देश का इक हुनर घट गया

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1 SEP 2021 AT 17:56

सुनता रहूं या ख़ामोश हो जाऊं कि तेरी इन बातों में खो जाऊं
हर लम्हे में तेरे संग हो जाऊं कि तेरी रूह के हर रंग में खो जाऊं

अब मेरे नाम से तुम्हें पहचान मिले कि अब तेरे नाम का हो जाऊं
कि मैं तेरा हो जाऊं तुम मेरी पूरी हो जाओ इसी ख़ुशी में रो जाऊं

ये लम्हा कभी खत्म न हो बस इसी लम्हों में कुछ ऐसा खो जाऊँ
ये चाहत है कि तेरी चाहत की छांव में बिस्तर डाल के सो जाऊं

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1 SEP 2021 AT 11:04

उनके इश्क़ का दरिया ही क्या जो
मेरे एहसास को ही न समझ सका,
हमने तो अपने इस नादाँ दिल मे
इश्क़ का इक समुंदर बसाया था...

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31 AUG 2021 AT 16:30

यूं अपनी नज़रो से हर रोज न जाने कितने बवाल करते हो
बातें तो बहुत करते हो पर न जाने कितने सवाल करते हो

तेरी चाहत में चाहत की आग़ोश में यू दर बदर फिरता रहता हूँ
तुम हमसे नज़रे मिलाकर यूँ मेरी धड़कनों का इस्तेमाल करते हो

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22 AUG 2021 AT 1:37

यूं कुछ वादे पूरे हुए पर कुछ निभाने अभी बाकी है
वो खुशनसीबी ही क्या जिनके हांथो में इक राखी है
माना कि रिश्तों की बागडोर में सब के अपने फ़र्ज हैं
हो साथ भाई का तो फ़िर वर्दी क्या हर रंग ख़ाकी है

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21 AUG 2021 AT 23:36

वो सफर भी क्या हसीन था...
यू हर तऱफ का मौसम रंगीन था
जिस सफर में हमसफ़र साथ मे था
और उसका हाँथ मेरे हाँथ में था

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20 AUG 2021 AT 16:39

हर बार वक़्त को दोषी मत ठहराया कर ऐ ज़िन्दगी
क़ाबलियत कभी भी अच्छे वक़्त की मोहताज़ नही होती...

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19 AUG 2021 AT 22:52

आईना ख़ुद ब ख़ुद
धुंधला सा होता जा रहा है,
शायद कुछ हक़ीक़तों
से रुबरु होने लगे हैं हम....

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