माँ के बिना जीवन का
हर लम्हा सुना है!-
जब तुम होते हो
तब तुम होते हो
जब तुम नहीं होते हो
तब सिर्फ तुम होते हो....-
बच्चे थे न जाने कब बड़े हो गए
बेपरवाह थे कब समझदार हो गए
कल तक नहीं पता था अपने पराये का
आज केवल घर तक सिमटकर रह गए
घुस जाते थे किसी के घर में बिना पहचान के
आज पड़ौसी भी सबके लिए अंजान हो गए
कभी कभी लगता है कितना अच्छा था बचपन,
क्यों समझदारी का बोझ लादकर
घर में ही क़ैद हो गए।
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ऐ जिंदगी आ बैठ
कहीं चाय पीते हैं
थोड़ा-सा सुस्ती लेने दे
फिर दुबारा चलते है
थक गई होगी तू भी,
मेरे संग दौड़ लगाते-लगाते
तरो ताजा होकर फिर से,
ऊँची उड़ान भरते हैं
इतनी क्या है जल्दी चलने की,
उम्र के इस पड़ाव में थोड़ा संभलकर चलते हैं
और इंतजार न करवाऊंगी अब तुझको,
बस एक-दो चुस्की ओर मार लेते हैं
देख तो मौसम भी गड़बड़ा गया है,
दो पल इसी बहाने मुसाफिरों के संग भी गुजार लेते
ऐ जिंदगी आ बैठ,
कहीं चाये पीते हैं.....
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Some problems do not
come to test us,
but to identify the people
associated with us.-
माँ की " साड़ी "
कुछ सामान ढूंढते वक्त माँ की ' साड़ी '
अलमारी में मिली ।
मुझे याद है एक दिन माँ ने कहा था
ये ' साड़ी '
तुम पर बहोत अच्छा दिखती है ।।
मैं उसे पहनने लगी ....
एक हाथ से ' साड़ी ' को घुमाकर ,
कमर में बांध दिया ।
तब मन और शरीर दोनों को
सुकून सा लगा ।।
आईने की ओर देखा ...
तब मुझे ' साड़ी ' पर कुछ बिखरी हुई ,
सिलवटें नजर आयी ...
मेरी आखों से आँसू काश रुक जाते ।
और एक - एक सिलवटे आज माँ की याद दिला रही थी ।
इच्छा ज्यादा नही बस इतनी ,
काश एक बार ये ' साड़ी ' पहन के माँ को दिखा पाती ।
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अभी तक तो मै उनसे मिली भी नहीं हूँ
फिर ये धडकनें बढ़ सी क्यों गई !-