माँझा टिका हैं हस्त में ये पतंग जरा मै साध लूँ।। व्योम की प्रीत में अमावस चन्द्र को बाँध लूँ।। व्यक्ति विशेष मुझें नही आज किसी की सुध है बस प्रेम मेँ ये मन डूबा आज गौतम बुद्ध हैं।।
सफलता है विशेष कदम थोड़े कठिन हैं पर नही है निर्मम विशेष के लिए जाना तो जरूरी हैं । अपनी असीम उर्जा को खपाना भी जरूरी हैं।। समय के ध्रुवीकरण में शाम तो हिस्सेदार होगी ही तुम भी लौट आना पक्षियों के पद चिन्ह लेकर, पर अगली सुबह फिर जाना अपनी खोई उर्जा ढूढनें इस बार तुम विशेष मिलोगे।
प्रेम सुगन्ध में बाँधकर तुम तो इश्क कह आए अब तुम ही बताओं हम अपना प्रेम किसमें बाँधने जाए। स्वपन खनक मन के भीतर चिन्तित हूँ इस पल तुम्हारे प्रेमपत्र में लिपटा मुरझाया नील कमल।।
तुम लेखक मन से थोड़े नासमझ हो ! इसलिए जैसे भी हो वैसे ही लिखना तुमको मालूम है ! तुम्हारी बातों से ही हृदय पढूंगी तुम्हारा। इसीलिए मन गर हर स्वर से हारा हो तो गुनगुनाता एकतारा मत लिखना। जीवंत प्रतिमा गर तुम्हारी मुरझाई हुई हो तो सच कहती हूँ पुुष्परचित गलियारा मत लिखना तुम लेखक मन से थोड़े नासमझ हो ! इसलिए जैसे भी हो वैसे ही लिखना तुमको मालूम हैं! तुम्हारी बातों से ही हृदय पढूंगी तुम्हारा। इसीलिए गर पीडित प्राण हो तो अपेक्षा रहेगी तुम वास्तविक वर्तमान लिखना
जब जब इतिहास के पलटे जायेगें। तब उसमें मुरझाएं गुलाब अंकित नहीं होगे ना ही किसी मधुर गीत संगीत का दृश्य होगा। वहाँ सिर्फ एक प्रेम शब्द होगा जो उस समय किसी को प्राप्त था या कोई उससे वचिंत था।
लाखों दर्पण तोड दिए ,फिर क्यूं आज मैं स्वंय को अस्वीकार कर रही हूँ।बदलती तस्वीरें दीवार पर पुरानी है!!आज मै लिखती हूँ "उम्र का दालान" पुराना हुआ ,बस अब पहर ढ़ल जाने तक "उम्र के तकाजे" का इन्तजार कर रही हूँ।