पुरुषोत्तम कुमार   (पुरुषोत्तम कुमार)
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Joined 23 July 2018


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Joined 23 July 2018

एक पिता अपने बच्चों की खुशी के लिये न जाने कितने चुभन को अपने पहाड़ जैसे कलेजे में यूँही दबा देते है।

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Jindagi Rail Si
जिंदगी रेल सी

उपन्यास आज ही ऑर्डर करें।

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एक दिन आसमान धरती से मिल जाएगा।
हम बिना सीढ़ी आसमान पे चले जाएंगे।

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तुम्हारे पसीने की कीमत चुरा
अपनी तिजोरी भर गद्दे पे बैठे लोग
तुमसे पुछ रहे है न,
तुम घर से बाहर क्यूं निकले।

तुम कुछ बोलते क्यूं नही हो?
देखो तुम्हारे बच्चे कैसे बिलख रहे है।
शायद तुम्हे पता है की तुम्हारी चीख,
सत्ता की घोषणाओं में दब जायेगी।

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उनकी महलों मे चिकनी
चमचमाती, पांवों को गुदगुदा रही
मल मल की फर्श है।

तुम्हारे पास क्या है, नही - नहीं
तुम बोलो क्या है तुम्हारे पास?
धूप से तपती सड़कें,
पांव मे चुभती उसकी गिट्टी।

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ये पुलिस और कानून
तुम्हें न्याय और अधिकार नहीं
सिर्फ लाठियों की चोट दे सकती है।

जिसे सिंहासन पे बैठाया
तुम्हें रोटी और ईलाज नही
सिर्फ वोट डालने की हिदायत दे सकता है।

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जो हुक्मरानों को बैठाते गद्दी पर,
वो खाली पांव भाग रहें सड़कों पर।

उनकी पांव मल मल पर गुदगुदाती,
इनकी पांव में सड़क की गिट्टी गड़ती।

इन्हें न्याय और अधिकार
जो कानून और पुलिस नहीं दे पायी,
वही पुलिस वदन पे लाठियां चटकायी।

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कभी उदास मत होना
पतझड़ के बाद बसंत आयेगा।
अमावस के बाद चांदनी रात आएगी,
दुख के बाद सुख आयेगा।

सब दिन एक जैसा नही रहेगा।

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पिता के अरमाँ टूट न जाए
खाली हाथ लड़का लौट न आए

अरे, गम नही है उस बात की
कितनी खेत और
कितनी भैंसीया बिक गयी।

अरे, नहीं दुख इस बात की भी
बचपन मे स्कूल रोज़ पहुचाये थे,

वो टूटी साईकिल आज भी
धूल फाँक रही है घर के कोने में।

अरे, खाली हाथ खाली पांव
बस, तुम लौट तो आओ गांव।

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सरकार ने ट्रेन बन्द कर रखी थी,
वो पैदल आ रहे थे।
खबर आयी है, उनकी लाशों
को लाने के लिये सरकार ने
स्पेशल ट्रेन चलाई है।

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