Purushottam Singh   (Vrittant)
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Joined 24 May 2025


Joined 24 May 2025
23 HOURS AGO

गाँव में आती है दोपहर के बाद शाम,
बचपन में होती है दोपहर के बाद शाम
गेंद के मेले के पीछे भागने की थकान,
नदी किनारे में डुबकी और फूलों की मुस्कान

धूल में लिपटी हँसी और आँखों में चमक,
लुका-छिपी का खेल और बेफ्रिकी की झलक
मनमानी और मनमर्जी के दिन और रात,
सुकुन पहुंचाती हुई दादी और नानी की हर बात

पेड़ों की फुनगियों पर सपनों की पतंग,
हर शाम थी कहानी, हर सुबह कोई रंग
काँच की गोलियों में जादू था भरा,
हार या जीत से कोई फ़र्क नहीं पड़ा

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15 JUN AT 22:36

इस आसमान के नीचे नया कुछ नहीं है,
रातें बदल जाती है, लेकिन चांद पुराना है.
धूप नए रंगों में दिखती है, पर जलन पुरानी है,
चेहरे नए दिखते हैं लेकिन उदासी पुरानी है.

बादलों की बारिश में हर एक बूंद पुरानी है,
भोर का सूरज, रात की चांदनी पुरानी है.
नए सपने रोज़ आँखों में आते तो है हर रात,
मगर सुबह बताती है कि टूटने की रीत पुरानी है.

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25 MAY AT 11:31

किसी की मिल जाना उन्हें पाना नहीं है,
हर मुस्कान के पीछे अफसाना नहीं है.
कभी नजरें मिलती है बस राहों में,
नजरों का मिलना, मिल जाना नहीं है.

छू लिया किसी को ख्वाबों की तरह,
तो भी उसको हकीक़त में आना नहीं है.
किसी का मिल जाना, एक मोड़ हो सकता है,
उस मोड़ पर रुक जाना, निभाना नहीं है.

यूं ही कोई आ जाए दिल की जमीं पर,
तो समझना ये उसका घर बसाना नहीं है.
किसी का साया साया ही रहता है,
ये उसका हमसफ़र बन जाना नहीं है.

तेरा और मेरा साथ, हम हो जाना नहीं है,
किसी का मिल जाना, उन्हें पाना नहीं है.

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