किसे बताऊं दिल ए दर्द अपनी,
खुली आंखों में आसूं छिपाए बैठा हूं।
क्या इंतकाम होती जिंदगी की,
और ना जानें कितने दर्द छिपाए बैठा हूं।-
आप मुझे जानते हो सिर्फ इतना ही काफी हैं।
अच्छे ने अच्छा और... read more
बहुत सारा चीज़ है,जो बिखड़ा हुआ हैं।
ये घर,परिवार, मैं और जिंदगी की हसीं।-
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कुछ यादें हैं,जिसे मैं भुलना चाहता हूँ।
कुछ लम्हें है, जिसे मैं जीना चाहता हूँ।
सिकवा नहीं मुझें इन पल दो पल से।
शिकायत भी नहीं है,मुझे मंजिल से
हासिल हुईं जो खुशियां इन राहो में।
खुश हूं मैं लिए उसे अपनी बांहों मे,
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जिंदगी के साथ दिल का सहारा नहीं हैं।
तेरे बिना आधी हुई जिंदगी
और आधी जिंदगी हमारा नहीं हैं।
ये सफ़र और वक़्त सब बेबुनियादी है।
जीने में जुनून और तेरे आंखों का नज़ारा नहीं हैं।-
वक्त की जंजीरों से बंधा वक्त,
सुबह की तस्वीरों से बंधा वक्त,
ये वक्त ही वक्त से दूर खरा रहा,
वक्त ही वक्त से मजबूर बना रहा
वक्त को तसल्ली कहां वक्त से,
वक्त तो उसे भी मिलता वक्त से।
वक्त मुस्किलो को वक्त बताया,
वक्त को भी वक्त ने ही सताया।
वक्त आता कहां कभी वक्त से,
वक्त को खुद तकल्लुफ है वक्त से।
पुरुषोत्तम प्रसाद
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मेरे इश्क़ से दूर,फिर भी तुम पास हैं।
कुछ मुझे हो रहा येसा अहसास हैं।।
कुछ मेरा,मुझमें तुमसा हैं।
तेरे ना होने का गम सा हैं।
तेरी याद संग लिए जी रहा।
तेरे बिना सब कुछ भ्रम सा हैं।
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वो मोहब्बत ही क्या जिसमें नाम लेना पड़े।
तुम सिर्फ इशारा करो और मुझे पता चले।-