तपती धूप में सुकूनभरी छांव से तुम ,
जिंदगी की जमीं पर अंबर में खिलते फूल से तुम ,
बसंत की पतझड़ में सावन के बहार से तुम ,
जनवरी के जश्न में मानो फरवरी के इश्क़ से तुम....।।।
Nima मौर्य-
हमनें आशिक़ी के अध्याय को अभी
अधूरा छोड़ा है... 😉
जि... read more
मत गुनगुनाओं इतना , उसके मोहब्बत के गीतों को ,
की हर गीत भूल जाओ ,
डूब जाना उसकी बेपनाह मोहब्बत में
पर इतना मत डूबना की देवदास बन जाओ ....।।।-
मन ...
इन लिबासों में मुझे भी
सजने को मन करता है ,
इस माथे पर लाल टीका
और कलाइयों में लाल चूड़ी
पहनने को मन करता है ,
पैरों में पायल की झंकार तो
झुमको पर तेरा गीत लिखने को
मन करता है ,
आंखों में किंजल तो
होठों को लालिमा में रंगने का
मन करता है,
हां मुझे भी अपनी सुंदरता
दर्पण को दिखाने का
मन करता है ....।।।
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तुम हमें यूं अधूरे ही अच्छे लगते हो ,
तुम्हें इस पूर्णिमा के भीतर से गुज़र कर
सम्पूर्ण होने की जरूरत नहीं ....।।।
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"मैं कौन हूं "
मैं एक दर्पण हूं ,
या
समाज की दृष्टि हूं
... (अनुशीर्षक )
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यही सच है
या
आंखों देखा झूठ
तुम 'अकेली' ही चल पड़ी
'नशा' भरा 'एक इंच मुस्कान लिए' ...।
'मैं हार गई ' 'सयानी बुआ' तुम्हारे इस
'महाभोज' के आमंत्रण पर ...।।
आपका बंटी
या
तीसरा आदमी
Nima मौर्य-
अभी तो कलम की नींब रखी है
स्याहीयां उड़ेलना तो बाकी है ,
इसे आप हमारा अंत मत समझना
ये हमारे आरंभ की कहानियां हैं
...।।।।-
कलम तो सभी ने देखी थी ,
पर चली ये गुरुओं के आशीषो से ।
मंजिल की हर राहें थीं स्पष्ट ,
पर कदम बढ़ी तो गुरुओं के आशीषो
से ....।।।-
"हिंदी"
तुलसी की श्रृंगारिक सौंदर्य तो मीरा की प्रगाढ़ प्रेम है हिंदी ,
घनानंद का पीर तो सुजान कि प्रतिष्ठा है हिंदी ,
सूर की अनुरागिनी तो महादेवी की चेतना है हिंदी ,
कबीर के राम तो सुभद्रा की झांसी है हिंदी ,
प्रेम का आंचल तो व्यापकता का चादर है हिंदी
शुक्ल के सामाजिकता का दर्पण तो जन आभूषण की झंकार है हिंदी ,
भावनाओं की शीतकालीन वर्षा तोविचारों
की सीप से निकलती ओस की बूंद है हिंदी ,
भारत माता की गोद में टिमटिमाती चांदनी रात है हिंदी ...🇮🇳
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"उड़ने दो हमें भी आकाशगगन में ".....👭
क्यूं करते हो अपनों से धोखा शर्म करों ऐ दुनियां के बेटों,
खुद तों जीते हो बिन्दास ज़िंदगी,
हमकों क्यूं रखते हों बंद कोठरी,
जीने दो हमकों भी ,ना दो इतने दर्द हमें,
हर वक्त हर पल होठों पर झूठी मुस्कान लिए फ़िरते हैं हम,
सड़को पर तेरी गंदी नजरों से पीड़ित होंते हैं हम,
ना करों ऐसी हैवानियत की फिर कोई और दामिनी दफ़न हों जाये,
कहते हों माँ दुर्गा और माँ काली हमें ,
और फिर उस माँ का ही आँचल खींचा करते हों,
क्यूं रखते हो चेहरे पर बनावट- भरी मुखौटा,
क्यूं लज्जित हमकों करते हो,
हमसे है संसार तेरा, हम ही हैं जननी तेरी,
हम ही हैं बहना तेरी ,हम ही हैं माँ -बेटी भी,
करते हैं अनुरोध हम आज बेटियां तुझसे,
हम भी हैं आजाद परिन्दे तेरे इसी गगन के ,
भरने दो उड़ान हमें भी इन्ही खुले आकाशगगन में,
भरने दो उड़ान हमें भी इन्ही खुले आकाशगगन में........।।।।।।।
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