21 FEB 2018 AT 16:43

थके कदमों में थिरकते हैं,
अरमान अधूरे से....
साजों पे मटकते हैं कुछ,
सुर अनबूझे से....
घिरी हूँ रिश्तों की भीड़ में
मगर,लरजते हैं हाथ तलाश
में किसी के....
डबडबाई आँखों में हैं कुछ,
ख्वाब अधूरे से....
नाम से नाम है जुड़ा,ठहराव
में है कुछ जख्म नासूर से....
अल्फ़ाजों में खोजती हूँ मन
के सुकून को,भटकाव हैं
गहरे बिखरे से....
अभिवक्त करूँ ग़र दिल को,
फिर उठेंगें सैलाब सुनामी से....
फ़कत जीना है जी रहे बस,
यहीं हैं अब अंदाज जीने के....Copyright by Purnima Chhabra Jain@2016

- Jaahnashien