महकते फूलों की तरह
ग़र फूल मैं भी होती....
बेरोक टोक हँसती खिलखिलाती
महकती होती...ना रंग-रूप ना
किसी से दौड़ हौड़ में होती...
गुलशन में खिलते
फूलों की सहेली तो होती...
हर कोई हौड़ में दौड़ रहा है....
इन्सानों का काफिला
उन्नत होकर भी पिछड़ रहा है....
स्वार्थ हर रिश्ते में घुला
हुआ है.... इसीलिए फूलों सा
होना रूह को लुभा रहा है...Copyright by Purnima Chhabra Jain@2016
- Jaahnashien