18 FEB 2018 AT 21:16

बुझे-बुझे दीपों की लौ,
ठिठुर के ठहरी-ठहरी है,
रात के पहरे पर,चाँदनी
ठहरी है,सितारों में जैसे,
अनबुझे सवालों की पहेली
है,मुद्दतों के बाद...खुद में
खुद की तलाश,अनंत तक
रोशनी गहरी-गहरी है,,, purnima

- Jaahnashien