Purnima   (✍️पूर्णी (purni))
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Joined 15 April 2017


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Joined 15 April 2017
24 APR AT 22:13

आहिस्ते आहिस्ते खिसकते गए जो सब ऊँची हवेलियों में,
मेरा सोंधा सा महकता वो मिट्टी का घर अकेला रह गया।

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23 APR AT 22:38

कमरे में जिस महक को छोड़ गए
साँसों की खुशबूएं बुलाती हैं।
गिर न जायें ये अश्क़ आँखों से
प्यार की बदलियाँ बुलाती हैं।
तेरी आवाज़ गूंजती है जब
यादों की हिचकियाँ बुलाती हैं।
यूँ जो तन्हा सा छोड़ जाते हो
दिल की विरानियाँ बुलाती हैं।
शब-ए-इन्तजार में जो बीत रही,
रंज की सिसकियाँ बुलाती हैं।
आ भी जाओ कि जी नहीं लगता
इश्क की हर तलब़ बुलाती है।

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15 FEB AT 0:18

हर जन्म के
हर वर्ष में,
हर वर्ष के
हर दिवस में,
हर दिवस की
हर सुबह में,
हर रात में,
हर पहर में,
हर पल में,
हर क्षण में
मुझे प्रेम चाहिए तुम्हारा,
फूलों की महक नहीं
तुम्हारे जिस्म की खुशबू चाहिए,
उपहार नहीं कोई
मुझे प्रेम की सौगात चाहिए,
मेरे जीवन में घुली तुम्हारी बातों
की मिठास चाहिए,
तुम्हारा साथ चाहिए हर पल
कोई वादा नहीं चाहिए,
तुम्हारी बाहों का आलिंगन मुझे
हर बार चाहिए,
सिर्फ होठों पर नहीं
मेरी आत्मा पर तुम्हारी छुअन का
एहसास चाहिए,
प्रेम का सप्ताह नहीं
मुझे प्रेम का पूरा युग चाहिए,
ब्रम्हांड चाहिए,
मुझे अनन्त प्रेम चाहिए!!

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9 FEB 2023 AT 11:05

तस्वीर नहीं है कोई
पहली मुलाकात की,
बस पहली बार तुम्हारी उंगलियों के छूने से
जो बिखर पड़ा था गुलाबी रंग मेरी हथेलियों में,
वो आज भी झरता हैं रातों में,
हरसिंगार के फूलों जैसा
और तुम्हारी अनुपस्थित में
महका जाता है मुझे!
हमारी नज़रों के पहले मिलन से
जो छींटे पड़े थे प्रेम के
वो आज भी बरसते हैं मुझ पर,
और भिगा जाते हैं मेरा तन मन
बिल्कुल पहली बारिश की तरह!
तुम्हारा हाथ थामना आज भी
पहली छुअन सा है,
तुम्हारा एकटक देखना जैसे
प्रेम की पहली बारिश
और हर इक मुलाकात पहली सी!

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14 OCT 2022 AT 13:53

चाँद सरीखे लगते हो तुम,
इन्तजार करवाते अच्छा लगता है क्या ?
पूनम की एक रात की तरह
बिखेर जाते चाँदनी
जो हर रोज घटती जाती है
इन्तजार में
मालूम है कि लौट आओगे
अगली पूनम को
पर तुम्हारे बिना बीते ये पल
अमावस ही लगते हैं
अब आ भी जाओ कि
चकोर बेचैन है तुम्हारी!

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7 AUG 2022 AT 22:11

मेरी कविता हमेशा से बढ़ती आ रही है
और आगे भी बढ़ती रहेगी
तुम्हारा साथ पाकर कुछ और
शब्द मिले हैं
पुराने शब्दों के साथ मिलाकर बस
उनसे पंक्तियाँ बनानी हैं
उन पंक्तियों का सार ही हमारी जिन्दगी होगी,
जब अंतिम पड़ाव पर सिर्फ हम दोनों ही होंगे
तब सुनेंगे उन पंक्तियों को,
और छाँट लेंगे अपने अपने शब्द
जिन्हें हम ले जा सकें अगले जन्म में
करने को पंक्तिबद्ध उन्हें,
यदि ढूँढ लेंगे एक दूसरे को
बनायेंगे नई पंक्तियाँ,
इस तरह कविता बढ़ती रहेगी
कभी समाप्त न होगी।
कविता अमर है
शब्द अमर हैं
जीवन कविता है
पर कविता जीवन नहीं है
वह ब्रह्मांड के नियम से परे है।

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4 AUG 2022 AT 21:08

आप से ही है हमारी दास्तान-ए-जिन्दगी
आप से ही है हमारी साँस ये चलती हुई,
भर गई है रोशनी राहों में फैली खुशबूयें
रात की रानी के जैसे दुनिया मेरी खिल गई।
आप से ही है हमारी मुस्कुराती शोखियाँ,
आप से ही हैं हमारी बच्चों सी नादानियाँ
यूँ हमारी ज़िन्दगी में आप जब से आ गये,
महफ़िलों सी सज गई हैं तब से ये वीरानियाँ।

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11 MAY 2022 AT 11:17

उलझते रहे हम, सुलझते रहे हम,
शब भर हवा में बिखरते रहे हम।

मिली धड़कनों को जो आहट पिया की,
बड़ी देर तक फिर संवरते रहे हम।

जो बारिश के छींटे पड़े रूह पर तो,
यूँ श्रृंगार बिन ही निखरते रहे हम।

नज़र ने पिया की छुआ जो बदन को,
यूँ शरमा के खुद में सिमटते रहे हम।

जो चूमी उन्होनें हथेली हमारी,
तो मेंहदी के जैसे महकते रहे हम।

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7 APR 2022 AT 23:01

प्रेम आपके जीवन में आता है,
पहले आप प्रेम को समझते हैं,
प्रेम को महसूस करते हैं,
उसे खुद में पोषित करते हैं,
प्रेम आप में जीने लगता है
फिर धीरे-धीरे प्रेम आपके
जीवन में घुल जाता है,
आपके हर लम्हे में वो आपसे
पहले दिखाई देता है,
आपको समझने लगता है,
प्रेम आपको पोषता है,
आप में भरता है विश्वास
और अब आप जीते हैं प्रेम में
और प्रेम बन जाता है पालक,
प्रेम है "ईश्वर"

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25 MAR 2022 AT 21:41

जब भी सुनती हूँ
जी चाहता है बस सुनती रहूँ
ये "और बताओ " खुद में कई
कहानी लेकर आता है!!

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