किसी की चाय का ज़िक्र
तो कहीं रातों का चर्चा हो गया
अजीब बेवकूफ था मै जो बेवजह खर्चा हो गया-
किसी ने कहा कि
आज कोइ गया तो कल कोई और आएगा
और इश्क़ ही तो था कल फिर हो जाएगा
मैंने जवाब देना जरूरी ना समझा
उठ के जाने को हुआ ही था कि वो बोले
कुछ तो कहिये स्याही
मैं मुड़ा और कहा कि मालिक
दिल था कोई दुकान न थी
कि किसी को भी सौंप दी जाए
और इश्क़ था कोई सामान न था
कि बिक जाये तो नया लिया जाए
बाकी आप हमे समझ नही पाएंगे
घर जाते हुए बस सर खुजाएँगे
और रातें बेचैनी में गुजार कर
कल फिर से यही नजर आएंगे...
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मेरा बचा है कौन जो रुखसत मुझे करे
इक ग़म पुराना कुछ आंसू ही आये हैं
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जो खुश गुमां हो यूँ तुम मेरे हशर पे
तूफान तुमसे भी पूछेंगे हवा कैसी है-
रात मुझमे, मैं रातों में अब बेदार रहता हूं
शब ए फुरक़त कि यादों से जब दो चार रहता हूं
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दिल ए फरियाद लहू से अदा ही होगी अब
इश्क़ की क़िस्त की बड़ी महँगी ये भरपाई है-
लहू टपकता है दरारों से अब भी
पर निकलती नही जो जान बाकी है
आखरी मंजर तक तोड़ कर देखूंगा खुद को
क्या अब भी कोई पहचान बाकी है
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ज़हर पानी सा कर बस पिये जा रहा हूं
ये किसकी ज़ीस्त है जो जिये जा रहा हूं-
दर्द के हिसाब से यहां खुदा याद किये जाते हैं
और लोग बस अर्जियां पढ़कर चले जाते हैं
दुआ कुबूल हो भी तो कैसे हो स्याही यहां
परेशानी बढ़ती नही कि खुदा बदल दिए जाते हैं-
के किसी को मरने से बचाती हैं
तो किसी पे केहर कर जाती हैं
कातिल नजरें हैं हज़ूर बस इसी काम आती हैं-