Punit Thakre   (इंजी.पुनीत प्रतीक ठाकरे)
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Joined 27 December 2018


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Joined 27 December 2018
19 MAY 2023 AT 3:21

"ॐ श्री बागेश्वराय नमः ।"
सनातनी बब्बर शेर ( श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री )
जन्म लेकर ग्राम गड़ा के खोल दिये जिसने भाग्य है ।
दादा गुरु के आदर्शों से धीरेन्द्र बने ये सनातनीयों का सौभाग्य है ।
रगो में जिसके सनातन की उबालें है ।
जिसने पीये है लोगों के तानो रूपी विष के प्याले है ।
साधु जी के परम शिष्य अब जग के उजाले है ।
नाम धीरेन्द्र उनका वो सनातन के रखवाले है ।
साधू जी के प्रिय शिष्य बालाजी के भक्त वो मतलवाले है ।
सौम्य सी मुस्कान उनकी सिंह से जिगर वाले है ।
होश उड़े है सबके जब वो अर्जी लगा पर्चा खोले है ।
दंग हो रहे सब जब वो पर्चे में लिखा सच निडर होकर बोले है।
है दिव्य शक्ति मिली गुरु के अनन्य सेवाओं से ।
निःस्वार्थ लगन लगी बनने पूर्ण सनातनी माँ की दुआओं से।
ग्राम गड़ा के उस पावन धरा को प्रणाम है।
जुड़ी आस्था जिससे वो धीरेंद्र जी अब सनातन के प्रमुख आयाम है।
चहुँओर फैली जिसकी महानता वो बागेश्वर धाम है ।
हम है सनातनी शेर जो जपते हरदम राम राम है।

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16 FEB 2023 AT 17:46

वक्त से परे ना कोई ••••••

प्रबल मन भी मजबूर हो जाता है जब समय खेल जाता है ।साहस तो होता है हम सबमें ,पर वक़्त से लड़ना सबको नही आता है ।
कठिन राहों को पार करना निष्ठावान ही कर पाता है ।
बाकीयों का तो देख कर ही जी घबरा जाता है ।

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8 FEB 2023 AT 23:47

" आखिर क्यूँ "

खेलता है ये वक़्त ।
बनके हर पल होके ये सख्त ।
तोड़ता है मेरे अरमानों को ।
सुनायी देती है अलग राग मेरे कानों को।
कल कल बहता पानी भी राह ढूढं लेता है ।
इंसान क्यूं दूसरे से विश्वाश यूँही खो देता है।
ये समय फेरा ऐसा की काम के समय रिश्ते बना लेते है ।
निलते ही काम आपसे वो आपको पल में पराया बना देते है ।
वक़्त बेवक़्त में सहारा नहीं मिलता है अब ।
ये भी मेरा वो भी मेरा करते है यहाँ सब ।
गुरुर लिये घमंड में सर उठा कर चलते है ।
विनम्र हो जो उन्हें ये पैरों तले रौंदते है ।
जालिम जमाने की बात बड़ी बेरंगी है ।
सरीफ नहीं जानता कि दोगले भी उसके संगी है ।

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6 FEB 2023 AT 18:16

क्या कहूं यादों के सहारे जो जी रहा हूँ।
वक़्त के साथ तुम जो बदले वही गम के घुट पी रहा हूँ।
लिखने को जब भी तेरे बारे में सोचा यादों को ताजा किया।
मानो बीते कल की वो बाते वो दिन रातें किसी ने सजा दिया ।

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8 NOV 2021 AT 21:39

कोहिमा

"कर प्रयत्न बन सबल , सम्पूर्ण तू खुदमे असिमित तेरा बल ।
तोड़ कर रूढ़िवादिता , रचे एक बेहतर कल ।"


कल कल बहता निर्मल धारा सा था तेरा बचपन ।
तरंगो की तरह चमकीला सा था तेरा लड़कपन।
थी एक छोटी सी कली कभी,अब खिला हुआ फूल तू ।
बदलते समय में वक़्त के साथ आगे बढ़ती तू ।

रचने को इतिहास , है तुझमे कुछ तो खास ।
विविधता से लड़ने को ,अदम्य साहस है तेरे पास ।
सच एक यही अक्कू के लिये है छोटी माँ ।
है माता-पिता का साया उसका तुम ही ' कोहिमा ' ।

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8 JUL 2021 AT 18:52

👩‍💼ईशा 💕 पंकज 🤵

जोड़ा दोनों का बड़ा अनोखा ।
मिला प्रभु से चंचलता और धैर्य का लेखा जोखा।
ईशा है एक दरिया सी लिये चंचल स्वभाव ।
पंकज धरे धीरज समुद्र सा , रखे वो समभाव ।
एक दरिया सी रहे खुद में मस्त मगन ।
दूजा समुद्र सी उदारता लिए , बसाये खुदमे विस्तृत गगन।
ईशा में छुपा है एक चंचल स्वरूप ।
पंकज से पूर्ण हो उसके श्रंगार के हर रूप ।
दोनों के साथ मे कई किस्से बने है।
हाँ ये एक दूजे से परस्पर जुड़े है ।
पंकज के रूठने में जरूर थोड़ी तकरार है।
पर ईशा के मनाने में भी बेसुमार प्यार है ।
इश्क में इनके हर स्वाद है जिसका रंग लाल है ।
एक दूजे के लिये बने है बस इनको इसी का मलाल है।

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26 JUN 2021 AT 17:21

तराजू के पलड़े में एक तरफ तू दूसरी तरफ हुँ मैं।
धर्म अधर्म की लड़ाई में एक तरफ तू दूसरी तरफ हुँ मैं।
नीति अनीति की पढ़ाई में एक तरफ तू दूसरी तरफ हुँ मैं।
शिक्षित अशिक्षित समाज के पहलू लिए एक तरफ तू दूसरी तरफ हुँ मैं।
सृजन और विनाश की सोच लिए एक तरफ तू दूसरी तरफ हुँ मैं।
ज्ञान अज्ञान का भेद किये एक तरफ तू दूसरी तरफ हुँ मैं।
आस्तिक या नास्तिक के विचार किये एक तरफ तू दूसरी तरफ हुँ मैं।
मुझमे छिड़े गृहयुद्ध से कर्म और मेरी सोच में जकड़ा हुँ मैं।
इन सिक्के के दो पहलु में सिमटा हुँ मैं ।

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24 JUN 2021 AT 11:52

व्यक्तित्व निष्पक्ष नहीं , चरित्र भी इनके दोहरे है ।
भीतर से खोखले ये , गुलामी के मोहरे है ।
परखते दूसरे को ये , भीतर चोर समाय बैठें है ।
मोह माया में से घिरे ऐसे , हरपल लालच में ऐंठे है ।

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24 JUN 2021 AT 9:36


याद आता है वो आम भी , चढ़ कर तोड़ी थी जो जाम भी ।
बचपन मे खेले थे जहाँ खेल , कांक्रीट के जगंल में गुम हो गयी वो शीतल छाँव भी ।

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15 JUN 2021 AT 11:22

स्वाति ठाकरे

विनम्रता है जिसकी पहचान , पिता में बसते जिसके प्राण ।
पिता के है तीन अंश है उनकी वो आन बान और शान ।
बड़ी स्वाति सबमे रखे ख्याल वो प्रतिपल सबका ।
संजोय परिवार को ऐसे , जैसे धागे में पिरोया माला का हर एक मनका।
सर्वगुण वो पारंगत हर चीज में खुद में परिपूर्ण वो ।
हर कसौटी में उतरे खरी है निपुर्ण वो ।
सौम्य रूप , धरे संयम और मन हर्षिला।
प्रफुल्लित रहे हरपल , सफल वो शुशीला ।
रति सी छवि उसकी , ऊर्वशी सी सुंदरता ।
प्यार करे सबसे , बड़ो के आशीषों से मिली उसे सफलता।

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