Punit Saini   (पुनीत)
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Joined 26 January 2024


Joined 26 January 2024
22 MAR AT 18:53

मन में बुनता हूँ विचारों का मकड़जाल ,
फिर खुद ही उसी में फंस कर रह जाता हूँ ।
कभी पाता हूँ दोषी खुद को,
कभी खुद को बरी कर जाता हूँ ।।

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20 MAR AT 12:15

समय समय की मित्रता,
समय समय की फूट।
कोई कभी रूठ जाता है,
और कोई जाता टूट
हित साधो तो मित्रता
ना साधो तो फूट
रूठा कभी मान जाता है
और अपना जाता टूट।

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14 MAR AT 11:47

अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।

अब हर एक नज़र पहचानी सी लगती है,
अब हर एक डगर कुछ जानी सी लगती है,
बात किया करता है, अब सूनापन मुझसे,
टूट रही हर सांस कहानी सी लगती है,
अब मेरी परछाई तक मुझसे न अलग है,
अब तुम चाहे करो घृणा या प्यार, मुझे परवाह नहीं है।
अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।

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11 MAR AT 5:15

मित्रों तुम्हारी क्या बात कहूं
मैं हरदम तुम्हारे साथ रहूं।
मौज-मस्ती की नादियों में बहकर
हर मुश्किल तुम्हारे साथ सहूं ।।

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24 FEB AT 22:16

मिज़ाज अपना मिला ही नहीं ज़माने से
न मैं हुआ कभी किसी का न ये ज़माना मिरा।।

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6 FEB AT 21:40

तेरी यादों में खोया रहता हूँ
मैं तन्हा – तन्हा अब रहता हूँ
रातों में जागा रहता हूँ,
ख़ुद से बातें करता रहता हूँ
बड़ा गुमराह किया तुमने अपनी बातों में
जिसमें कुराबां हुए हम हर वो रातों में
बैचैन जिगर..
भावुक धड़कन ..
और चिंतित मन
बस तेरे पीछे मारा फिरता हूँ
मैं ख़ुद में उलझा रहता हूँ
बस तेरी बातें करता हूँ ।।

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30 JAN AT 13:26

जिन्दगी भी किस मोड़ पर आ कर रुक गई है
कमरे से दफ्तर, दफ्तर से कमरे तक सिमट गई है
खो गई सारी वो घर सी मिठास,
मन में तो बस यादें ही रह गई है।
।। पुनित ।।

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26 JAN AT 11:59

क्या दुःख और क्या सुख
जैसा दिन बीत गया सो बीत गया..
कौन वैरी और कौन सारथी
जैसा वो हो लिया सो हो लिया ।।
।। पुनित।।

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