यह ध्येय नहीं सब सपने पूरे कर पाऊँ मैं
जब मृत्यु हो तो स्मृतियों के संग जाऊँ मैं
© पुनीत अग्रवाल-
काश टूटे हुए दिल की ये कहानी तो रहे
न इबारत में सही पर ये ज़बानी तो रहे
ये मेरे ज़ख़्म न भर जायें ज़रा ध्यान रहे
जो भी खोया है कोई उसकी निशानी तो रहे
© पुनीत अग्रवाल-
चित्त में हो धर्म ध्वजा, आचार में संस्कार हो,
असत्य क्रोध द्वेष लोभ, नष्ट सभी विकार हो,
विभिन्नता में एकता का दृष्टान्त दिया राम ने,
सत्यनिष्ठ रामोचित ही व्यवहार हो विचार हो।
© पुनीत अग्रवाल-
उपवन में जन्मे हैं जो वो पुष्पों की कीमत क्या जाने
आँखों में जिनके सूरज हो दीपों की हिम्मत क्या जाने
जिनको सब कुछ ही मिल जाता हो घर बैठे दुकानों से
वे छाया फल देने वाले वृक्षों की रहमत क्या जाने
जिनकी जिह्वा पर सरगोशी मन में हो कालिख की शीशी
वे मासूमों के दामन पर धब्बों की तोहमत क्या जाने
हर रोज़ अलग शाखों पर जो रहने को जीवन समझे हैं
आजीवन एक उस प्रीतम की बाँहों की आदत क्या जाने
कपड़ों पर मिट्टी लगने से जिनको परेशानी होती हो
उखड़ी साँसों की, बूँदों की, काँधों की मेहनत क्या जाने
© पुनीत अग्रवाल-
इच्छा छूटी, प्रतिमा फूटी, और टूट गया प्रत्येक भरम,
अपने होते विलग सभी, थकते गिरते निस्तेज कदम।
रिश्ते नाते, नारी-बच्चे, कितने क्यों कैसे सम्बन्ध,
सपनों के प्रासाद रेत के, निष्ठा के झूठे अनुबन्ध।
जीवन की गठरी को लादे, जब पथिक हो गया क्लांत,
उत्साही काया अस्ताचल, अब तो मन खोजे विश्रांत।
कर ले तैयारी चलने की, अब त्यागो मन बंधन की डोर,
अंधेरों को अपनाओ अब, इस तम से ही निकलेगी भोर।
मौत नहीं है अंत अरे मन, एक नव संस्करण, पड़ाव है।
आत्मा के शाश्वत जलधि में, ये नूतन जीवन की नाव है।-
बेहतर होगा कि तुम इन्हें सब बता ही डालो
वरना ख़ामोशी के मायने निकाल लेंगे लोग,
ये खुश्क आँखें, वीरां दिल, बुझा हुआ चेहरा,
इस राख में से भी चिंगारी खंगाल लेंगे लोग।
पुनीत अग्रवाल
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जो निभते हों सहज सही,
हैं सुखद होते रिश्ते वही,
जो निभाने की हो लाचारी,
वह होती है दुनियादारी।
✒️ पुनीत अग्रवाल-
कुछ भरम भरम ही बने रहें तो अच्छा है,
आवाज़ नहीं होती है दिल टूटने पर।
सिसकती है रूह और सुलगती हैं नज़रें,
ख़्वाब बिखरने पर, ऐतबार छूटने पर।-
जाते जाते वो आसमां के सितारे ले गया,
दिल की बहारें ले गया और नज़ारे ले गया,
नींद ले जाने तक तो मंज़ूर था हमको मगर,
वो तो अपने संग मेरे ख़्वाब सारे ले गया।
© पुनीत अग्रवाल-
बहर हो जाती गर शराब तो कुछ और बात होती
गर सच होते सभी ख़्वाब तो कुछ और बात होती
दबी हसरत, हिकारत, अदावत, न जाने क्या क्या
गर हो जाते दिल बेनक़ाब तो कुछ और बात होती
जो हम खामोश रहे तो थे हबीब, थे पसन्द उनको
गर देते हम उनको जवाब तो कुछ और बात होती
दिल में रही सदाक़त पर ज़माने ने माना हमें बुरा
गर हकीकतन होते खराब तो कुछ और बात होती
सिर्फ़ इतनी सी आरज़ू थी, इतनी सी थी जुस्तजू
गर मुस्कुरा देता माहताब तो कुछ और बात होती
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