Puneet Bhojak   (ÃñDy (आनंद))
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कभी फ़ुर्सत मिले तो हमें पढ़ना..
हम ज़िंदा नज़र आते है फ़ुर्सत में..
Joined 18 June 2017


कभी फ़ुर्सत मिले तो हमें पढ़ना..
हम ज़िंदा नज़र आते है फ़ुर्सत में..
Joined 18 June 2017
22 FEB AT 19:31

विश्वास आस था मेरा, बातें जो भीतर घात करी..
इक क्षण में टूटा सबल प्रेम, अगले क्षण दूजी बात करी..

वो केश कलाये-नयन-बालियां, मस्तक से सिकन छुपा न सकी..
जो बात अधूरी रही रात में, होंठो पे सवेरे आ न सकी..

टूट चुका था गहन ध्यान, मन का विचलन भी रुका नही..
बिखरा हुआ था अंतर्मन, पीड़ा का पर्दा छुपा नही..

ना छल कपट ना दोष कोई, जब बुझी राख अंगार बनी..
थक हार गया ये सब्र मेरा, बातें जब दो की चार बनी..

है कटु सत्य सुन लो तुम सब, वो निश्छल प्रेम था मेरा भी..
दुर्भाग्य रहा के आया अंधेर, इक पहर बाद था सवेरा भी..

जो बीत गया वो भूत काल, अब आज में सबको जीना हैं,
जो फिक्र बढ़ाये रक्त प्रवाह, उस फिक्र का शरबत पीना है,

जो गिर के उठ के फिर गिरे, वो सब सम्भलना जान गए..
इक बात जो 'आनंद' कही नही, वो बात हक़ीक़त मान गए..

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11 JUN 2023 AT 20:27

तेरे जाने के बाद, उसी जगह तुझे ढूंढते हुए..
एक शख़्स मिला, बगीचे में वो बेंच चूमते हुए..
कंपकंपाते होंठो से तेरा नाम लेते हुए..
इश्क़ छुपा रहा था कोई, इश्क़ होते हुए..

चेहरे की सादगी, आंखों में चमक थी..
लहज़े में कोमलता, बातें अदब थी..
अचानक चुप हो गया वो बोलते हुए..
देखा जब उसने तुझे, बाल खोलते हुए..

उस जगह, माहौल में अलग खुमारी थी..
तब पता चला इश्क़ भी एक बीमारी थी..
साथ छोड़ देते है लोग साथ होते हुए..
गला सुख रहा था, उसका भी रोते हुए..

एक जुनून, एक ख्वाहिश, कुछ तो बात थी..
इक तरफा ही रही, पर वो मुलाकात थी..
उठकर चलने लगा वो फिर कुछ सोचते हुए..
इसी बेंच पे रोज मिलता है, तुझे खोजते हुए..

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27 JAN 2023 AT 12:07

चीनी की तरह चाय में घुलता कोई नही..
बात को शायर की तरह बुनता कोई नही..
और लिखे तो आज भी है वो मतले-नज़्म..
जैसे तुम सुना करती थी वैसे सुनता कोई नही..

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1 DEC 2022 AT 11:17

नज़रो के सामने रहते है, दुआ-सलाम नही करते..

किस वहम में जीते है लोग, राम-राम नही करते..

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14 AUG 2022 AT 21:35

इस धरती का इतिहास रहा, बुरा किसी का ना चाहा है..
पहले बात जुबां से की, फिर पास बैठ समझाया है..
बाहों को फैलाकर हम हर जन को गले लगाते है,
गला पकड़ने वालों पर हम कभी तरस ना खाते है..(4)

इस धरती को छलनी करने जब भी दुश्मन आते है..
उनकी आज़ादी के नारे जब भारत मे लग जाते है..
आग उगलती है आंखे और खून उबाल खाता है,
उन गद्दारों का सर कुचलने को बस जी चाहता है..(5)

नमन कर इस मातृभूमि को अपना शीश झुकाउंगा..
नतमस्तक को हो इस भूमि पर अपना पाँव बढ़ाऊंगा..
अलग अलग रंगों में बसा जो भारत नज़र आता है,
तिरंगे के इन तीन रंगों में पूरा हिन्द समा जाता है..(6)

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14 AUG 2022 AT 21:27

ग्रह नक्षत्रों तारों के बीच पूरा ब्रह्माण्ड समाया है..
पृथ्वी ने भी अपने गृह में भारत को बसाया है..
यहाँ भूत-भविष्य-वर्तमान का उपजा एक ही नारा है,
वसुधा को कुटुम्ब माने वो हिंदुस्तान हमारा है.. (1)

यहाँ राम-अल्ला हर हनुमंत के सीने में मिल जाएंगे..
सज़दा कर या हाथ जोड़कर उन्हें वंदन कर जाएंगे..
भारत की इस पावन धरती की इतिहास गवाही देता है,
जल अर्पण लेता सूरज और ये चाँद गवाही देता है..(2)

इस धरती पर अनेको शूरवीर, संत, पीर हुए..
इसी धरती पर रानी पद्मा, सांगा, शिवाजी वीर हुए..
ये धरती मंगल पांडे, भगत सिंह, 'आज़ाद' की है,
ये धरती वीर सावरकर, लौह पुरुष, कलाम की है..(3)

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17 JUL 2022 AT 13:08

किस्मत के मारे हो किधर जाओगे.
इधर उधर जाकर कही थम जाओगे..
ये मौसम है इम्तिहानो का, संभलकर रहना,
मोहब्बत को पाओगे या मर जाओगे..

अभी तक संभाले रखे हो जो यादें..
वो किस्से वो तोहफे गुदगुदाती वो बातें..
इश्क़ के तराजू को किस तरफ़ झुकाओगे,
घर को संभालोगे या भाग जाओगे..

उन रूमालों में अभी सलवटें देखी मैने..
हाथ मल कर कभी जो रखी तूने..
अब क्या बारिशों के बाद नज़र आओगे,
पानी बादलो से नही आंखों से बरसाओगे..

उसे खुद से ज्यादा जान ने लग गए..
उसकी आदतों को भी अपनाने लग गए..
ये मोम सा दिल लेके किधर जाओगे,
वो आग है पास जाओगे पिघल जाओगे..

अब इबादतों में उनकी वो बात रही नही..
पास थे जब-तक, तब-तक बात कही नही..
अब हालात यूँ है, के दूरियों से भी मुकर जाओगे,
पास आने का कहूंगा तो पक्का लिपट जाओगे..

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26 MAY 2022 AT 15:35

अब सफर में रास्तों का पता कहाँ लगता है..

मैं उसे फ़ोन कर लेता हूँ जब मन करता है..

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12 MAY 2022 AT 10:26

तू हिस्से में नही, फिर भी तुझे अपनाए रखता है..

दिल पागल है, तेरी तस्वीर बटुए में लगाए रखता है..

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28 APR 2022 AT 18:16

कैसे बताऊ उन वादों को निभाने भी जाना है..

इश्क़ तो करना है पर कमाने भी जाना है..

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