विश्वास आस था मेरा, बातें जो भीतर घात करी..
इक क्षण में टूटा सबल प्रेम, अगले क्षण दूजी बात करी..
वो केश कलाये-नयन-बालियां, मस्तक से सिकन छुपा न सकी..
जो बात अधूरी रही रात में, होंठो पे सवेरे आ न सकी..
टूट चुका था गहन ध्यान, मन का विचलन भी रुका नही..
बिखरा हुआ था अंतर्मन, पीड़ा का पर्दा छुपा नही..
ना छल कपट ना दोष कोई, जब बुझी राख अंगार बनी..
थक हार गया ये सब्र मेरा, बातें जब दो की चार बनी..
है कटु सत्य सुन लो तुम सब, वो निश्छल प्रेम था मेरा भी..
दुर्भाग्य रहा के आया अंधेर, इक पहर बाद था सवेरा भी..
जो बीत गया वो भूत काल, अब आज में सबको जीना हैं,
जो फिक्र बढ़ाये रक्त प्रवाह, उस फिक्र का शरबत पीना है,
जो गिर के उठ के फिर गिरे, वो सब सम्भलना जान गए..
इक बात जो 'आनंद' कही नही, वो बात हक़ीक़त मान गए..
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