लोगो का परखने का नज़रिया
बड़ा नयाब होता है
मुँह में राम हाथ मे तलवार होता है
समझना भी अगर चाहे
तो बातों में काट होता है-
बता दे मुझे
की मेरे ज़खम सिल जाए
बरसो से जो मेरे उर को
टीस रहे
उसकी दर्द कुछ कम हो जाए
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मेरी बेकसि का आलम न पूछो
साख के टूटे पत्तो सी हो गई है
कभी तूफान उड़ा रहा है
तो कभी धूप की तपिश झुलसा रही है
न तो जुड़ सकती न ही किनारा पा सकती
मेरी दिल की हालत का न पूछो सबब
न तो इनकार कर सकती न ही इकरार
बेबसी की हद तो देखो
जिसे चाहा उससे चाहत का इजहार न
कर सकती
बिन झूले का झुल रहा मन मेरा
कभी उधर कभी इधर डोलता
कोई इसे समझ कर भी न
समझता
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मेरे साथ रहो
रात देती है हर पल सफाई
तुम भी आओ न मेरे पास
रात जगती है मेरे साथ
तुम भी मान जाओ न
मेरी बात-
जब जब याद आती है तुम्हारी
रूह बेचैन हो उठती है
फकत जान जाती है हमारी-
बात तो बात होती है
जो रात को खास बना देती है
एहसास के अहसास को जगाकर
दिल में घर बना लेती है-
अहदे वफ़ा की कसमें नहीं खाई
फिर भी बेवफ़ाई का तमगा मिला
खायी उसने भी तो निभाई नहीं
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मन को भटका कर
बहुत कुछ पा लिया मैंने
दर्द को सागर बनाकर
उसमें डुबकी लगा लिया मैंने-