Puja Sud Doegar   (पूजा 'काव्या ')
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Joined 14 January 2020


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15 JUN AT 19:54

पापा जीवन की सशक्त, संबल वो शक्ति है,
ताउम्र राह सही दिखा, मार्गदर्शन करती है,
शीतल छॉंव बन कष्टों की धूप जो सहती है।

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15 JUN AT 19:04

स्तंभ बनकर परिवार को, सदा ही है संभालना,
खड़े रहना तनकर, जिम्मेदारियाँ उम्रभर निभाना,
घर की नींव अगर कहलातीं, सदा से ही हैं मॉं....
पापा से सीखा मैंने, छत औ' दीवार है बन जाना,,

कभी टिक-टिक घोड़ा बच्चों का बनना प्यारा-सा,
कभी जीवन की कठिन डगर का ठोस सहारा-सा,
पापा से सीखा मैंने, प्यार जीवन में सदा निभाना ,
कभी खट्टा, कभी मीठा, तो कभी-कभी खारा-सा,,

धीर, गंभीर, हैं दिखते वे सख्त, पर भीतर से नर्म,
हृदयतल में समेट रखे हैं, पर न जाने कितने मर्म,
रत्न एक नैसर्गिक अधिष्ठित सतत् ब्रह्माण्ड में हैं,
पापा से सीखा मैंने, कड़ी धूप में छॉंव ही है धर्म,,

जीवन की सशक्त, एक संबल शक्ति बन उभरना,
सभ्यता औ' संस्कारों की अभिव्यक्ति सदा करना,
एक आस, एक आभास, एक दृढ़ विश्वास रखकर,
पापा से सीखा, परिवार के लिए सतत् धीर धरना।

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11 JUN AT 18:32

बाह्य शक्ति का गठन
आंतरिक का हो मनन,
तब स्वयं का स्वयं से
हो जाए स्वत: चिंतन।

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5 JUN AT 15:43

धरा पर छाई छटा देखो सुहानी है,
ओढ़ ली चुनरिया उस ने धानी है,
श्रंगार यूँही सदा अविरल होता रहे,
मानव के होने की यही निशानी है।

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2 JUN AT 17:56


दो जून की रोटी

आज दो जून है...
और आज के लिए ही
इंसान पूरा साल काम करता है,
ताकि दो जून आए
और वह रोटी खा सके,,

सुबह से शाम तक
रोटी कमाने की चाहत में,
रात से दिन तक
और दिन से रात तक
साल भर कमाता है...
ताकि दो जून आए
और वह रोटी खा सके।

सकून को रख देता
है ताक पर वह,
आराम करने की
लालसा को दबा देता
है मन में ही वह...
ताकि दो जून आए
और वह रोटी खा सके।

अब आज आ ही गई
दो जून की तारीख है,
तो छोड़ कर काम सारे,
हैं आज तो वारे-न्यारे...
खा लेते हैं चलो हम - पूजा 'काव्या'
दो जून की रोटी...!

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1 JUN AT 10:36

Calm Manoeuvre
of
Thoughts

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30 MAY AT 9:57

हूँ तोड़ गया आज मैं, अपनी ही शाख से,
जब चुना गया हूँ मैं एक, उन लाख से,,

चढ़ूँगा देव चरणों में, या होऊँगा अर्पित शहीदों पर,
गुँथ जाऊँगा मैं माला में, या फिर सजूँगा बालों पर,,

पर मेरी भी एक कथा है, तुम मेरी कभी व्यथा सुनो,
क्यों तोड़ा मैं जाता हूँ..., बिन कसूर मसला जाता हूँ,,

क्या मेरी कोई चाह नहीं, किसी को भी परवाह नहीं,
समझ लेना तुम मेरे मन की, है राह मेरे भी तन की,,

बन कर सौंदर्य रूपक, सब को नित मैं लुभाऊँ,
अपनी ही खुशबु से तो, वन-उपवन मैं महकाऊँ,,

बस, याद सदा यह रखना, बिन कारण कभी भी,
किसी पुष्प को मत तोड़ना, पैरों तले न यूँही रौंदना,,

खिलने देना उसे गुलशन में, मुस्कुरा ले वो भी चमन में,
साख है उसे तो सहेजने में, फिज़ाओं के महकने में।

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23 MAY AT 10:15

ascends



descends

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21 MAY AT 22:58

पसरी हुई कैसा अजब-सी तृष्णा, लिप्सा पनप रही,
बस सुनाई दे रही खनक, पैसों की ताकत दिख रही,
गरज रही वो अर्श से फर्श तक, चपला-सी है चमके,
दिलो-दिमाग पर हकूमत उसकी हर पल है छा रही,,

संस्कृति, संस्कार को दुनिया है अब भुलाने लगी,
पैसों की ताकत सबको देखो, कैसे दबाने लगी,
गुण, चरित्र, सद्वृत्ति, सदव्यवहार संग हो न हो,
पैसों के ताकत वैरी में आज धौंस जमाने लगी,,

रह नहीं गया पैसा अब तो साधन बस ज़रूरत का,
चढ़ा नशा बदस्तूर सभी पर दौलत की ताकत का,
एक-दूजे से अधिक पाने की ऐसी होड़ है लग गई,
रिश्ते सरेराह मतलब, पैसा बेमतलब की कीमत का,,

पैसों का लालच हर किसी में बढ़ता ही जा रहा है,
औ' चरित्र तो नित निस दिन यूँ घटता जा रहा है,
रिश्तों के व्यूह में नया चक्रव्यूह वो रोज़ रचा कर,
मॉं, बाप, भाई, बहन से मुँह मोड़ता ही जा रहा है,,

धनवान पैसों की ताकत से शोहरत को है पा जाता,
वहीं गरीब तो दो जून की रोटी भी नहीं है कमा पाता,
दिखाई क्यों देता अलग-अलग जीवन के सब रंग हैं,
शायद पैसा नैतिक मूल्यों से अधिक इज़्ज़त है कमाता,,

अजब विडम्बना दिखती है हमारे देश के समाज की,
पैसों के ताकत में फैली हुई यहॉं असमानता काज की, - पूजा 'काव्या'
अमीर नित अमीर, गरीब की हालत दयनीय है बनती,
पैसों के आधार पे भेद से महत्वता क्षीण हुई आज की।

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20 MAY AT 19:05

तेरे अंजुमन का ही है सरूर जो दिवाने दिख रहे हैं,
लम्हा-लम्हा हम प्यार के अफ़साने लिख रहे हैं,,
पी जाऊँ तेरे हाथों मय का बस इक घूँट जो साकी,
राह-ए-इश़्क का सरबाला बन मस्ती में झूम रहे हैं,,
दिल में उठ रही कतरा-कतरा लहर अरमानों की,
शमा की कसक लिए हम परवानों सा जल रहे हैं।

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