तुम्हारी बाहों मे,
कुछ ख़ास सा सुकून है।
जैसे पा लिया हो कुछ जिसकी तलाश थी ना जाने कबसे,
जैसे बरसों से भटकते मुसाफिर को घर मिल गया हो।
तुम्हारी बाहों में कुछ खास सा ठहराव है,
जैसे ये आखिरी पड़ाव है,
इसके बाद चलना नहीं
इसके बाद थकना नहीं,
जैसे इसी मकाम तक पहुँचना था,
जहाँ ताउम्र थामे जाने का भरोसा सा है,
जैसे दुनिया अब बस यही है,
यहीं से शुरू यहीं पर ख़तम।
जैसे सब कुछ यहीं है,
जैसे अब खो जाने का कोई डर ही नही।
तुम्हारी बाहों में,
कुछ ख़ास सा सुकून है।
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