पथिक   (पथिक)
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Joined 14 February 2019


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30 JUN 2024 AT 2:42

12122-12122
ये पल भी अंदर समेटना था
हसीन मंज़र समेटना था //1

रुके थे हम बस याँ इसलिए ही
हमें समंदर समेटना था //2

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30 JUN 2024 AT 0:22

221-1221-1221-122
तलवार तेरे तीर या  ख़ंजर के बराबर
वो आज अकेला ही था लश्कर के बराबर

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28 JUN 2024 AT 4:23


चुभने लगा है सबको ही प्यारा-सा सिपाही

जीते  हुए  लश्कर का वो हारा-सा सिपाही
-पथिक

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2 JUN 2024 AT 9:28

2122-222-2
जितनी दुनिया हम दोनों की
काफ़ी दुनिया हम दोनों की //1

एक तरफ है सारी दुनिया
बाक़ी दुनिया हम दोनों की //2

हिज्र में दोनों ही आधे
आधी दुनिया हम दोनों की //3

काश ये कट जाती, होकर
राजी दुनिया हम दोनों की //4

आसमानी थी पहले, अब
ख़ाकी दुनिया हम दोनों की //5
-पथिक

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31 MAY 2024 AT 23:09

22-22-22-22
वो साँवली भोली भाली लड़की
ग़ज़ल के लहज़े वाली लड़की //1

आँख में काजल और बालों में
फूल लगाने वाली लड़की //2

जंचती है चूड़ी बिंदी तुम पर
फिर वो कान की बाली लड़की //3

फूल भी शरमा जाता है, जब
तुम जो लगा लो लाली लड़की //4

ढूंढा हमने मिली न कोई
तुम जैसी ख़ुश-ख़िसाली लड़की //5

दरिया किनारे घूम रही है
झील पे आने वाली लड़की //6

कैसे बताऊं 'पथिक' मुझे वो
कर गयी कितना ख़ाली लड़की //7
-पथिक

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29 MAY 2024 AT 23:48

22-22-22-22-2
ऐसे  वो आस्ताँ छोड़कर गया
जैसे कोई जहाँ छोड़कर गया//1

कौन रहेगा  ख़ाना-ए-दिल में
इतना खाली मकाँ छोड़कर गया //2

उसके बस की नहीं थी आशिकी
दिल का था ना-तवाँ,छोड़कर गया //3

दिल जार ज़ार रोये न तो क्या करे
कुछ भी तो नहीं याँ छोड़कर गया //4

दिल में रह गयी ताब इश्क़ की बची
आग बुझाया धुवाँ छोड़कर गया //5

उसको सोचूँ कभी तो लगे है 'पथिक'
अच्छा है मिरी जाँ छोड़कर गया //6
-पथिक

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24 MAY 2024 AT 10:08


212-212-212-212
है ख़ुदा की कसम, तू नहीं चाहिए
खुश हैं तन्हा ही हम, तू नहीं चाहिए //1

जी भले लेंगे तेरे बिना ही मगर
मुझको दुल्हन से कम, तू नहीं चाहिए //2

सांस के जैसी हो तुम ज़रूरी मुझे
मुझको है ये भरम,तू नहीं चाहिए //3

चाह रहती रूहानी तो बढ़ते क़दम
हुश्न है ये हदम, तू नहीं चाहिए //4

हमने किरदार सारे बदल डाले अब
है कहानी भी कम, तू नहीं चाहिए //5

बढ़ते बढ़ते तुम्हारी गली में सनम
रुक गये हैं कदम, तू नहीं चाहिए //6

मुक़म्मल मिलो मुझसे मिलना हो ग़र
मुझको ज्यादा या कम तू नहीं चाहिए //7
-पथिक

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18 MAY 2024 AT 15:56

122- 122 -122 -122
ख़िज़ाओं के जो भी सताये हुए हैं
कहाँ उन  दरख्तों  के साये हुए हैं

ज़रा दिख भी जाओ तेरे शह्र में हम
बड़ी दूर से चलके आये हुए हैं

वफ़ा,दोस्ती, चाँदनी,जिंदगी, ग़म
ये सब हमने भी आजमाये हुए हैं

तेरे मुन्तज़िर हैं, किये रौशनी हम
दिये की जगह दिल जलाये हुए हैं

हवाओं की खुशबू बता ये रही है
ओ भींगे बदन छत पे आये हुए हैं

दग़ा कर गया है सहेली से कोई
गले मुझको तब से लगाए हुए हैं
-पथिक

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15 MAY 2024 AT 19:05

22-22-2
मैं कम-फ़ुरसत हूँ
जी! मैं  औरत  हूँ
-पथिक

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14 MAY 2024 AT 15:37

22-22-22-22-22-22
कब तलख़ तकेंगे दुन्या की निगहबानी को
अब चूम के आएंगे चाँद की पेशानी को //1

ज़ालिम ने रख दी है शमशीर आज पैरों में
मैं बस देख रहा हूँ उसकी पशेमानी को //2

इश्क़ मुक़म्मल नहीं मुसलसल सी दास्तां है
तू इश्क़ समझती है अपनी नादानी को //3

एक नयी लड़की को बाँधा है ज़ख्मों पे
हसीन है मगर पा नहीं सकती पुरानी को//4

सब अपनी ही दुन्या में यहाँ हैं परेशाँ
कौन सुनेगा अब औरों की परेशानी को //5
- पथिक

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